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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

राजा प्रजातिके पुत्र ऐसे थे। वे समस्त गुणोंसे सम्पन्न और सुन्दर थे। उनके नेत्र पद्मपत्रके समान सुशोभित थे। उन्होंने अपने भाइयोंको प्रेमपूर्वक पृथक्-पृथक् राज्योंमें अभिषिक्त कर दिया और स्वयं समुद्रवसना पृथ्वीका उपभोग करने लगे। उन्होंने पूर्व दिशामें अपने भाई शौरिको, दक्षिण दिशामें उदावसुको, पश्चिममें सुनयको और उत्तरमें महारथको अभिषिक्त किया। उन चारों भाइयोंके तथा स्वयं राजा खनित्रके भिन्न-भिन्न गोत्रवाले मुनि पुरोहित हुए और वे ही वंशपरम्पराके क्रमसे मन्त्री भी होते आये। उक्त चारों राजा अपने- अपने राज्यका उपभोग करने लगे। खनित्र उन सबके सम्राट थे। वे सारी पृथ्वीके स्वामी थे। महाराज खनित्र उन चारों भाइयों तथा समस्त प्रजापर सदा पुत्रोंकी भाँति स्नेह रखते थे। एक दिन राजा शौरिसे उनके मन्त्री विश्ववेदीने एकान्तमें कहा-'राजन्! मुझे आपसे कुछ कहना है। जिसके अधिकारमें यह सारी पृथ्वी रहती है, उसीके वशमें अन्य सब राजा भी रहते हैं। वह तो राजा होता ही है, उसके पुत्र-पौत्र तथा वंशके लोग भी क्रमशः राजा होते हैं। इसलिये आप हमलोगोंको साधन बनाकर अपने बाप-दादोंके राज्यपर अधिकार कर लीजिये। हम इस लोकमें ही आपको लाभ पहुंचा सकते हैं, परलोकमें नहीं।

राजाने कहा-हमारे ज्येष्ठ भाई राजा हैं और हमलोगोंको पुत्रकी भाँति प्रेमसे अपनाये रखते हैं, फिर हम उनके राज्यपर किस प्रकार अधिकार जमायें।

विश्ववेदी बोले-राजन! आप राज्यपर अधिकार कर लेनेके बाद राजोचित धन-सम्पत्तिके द्वारा अपने बड़े भाईकी पूजा करते रहियेगा। भला, राज्य-प्राप्तिकी इच्छा रखनेवाले मनुष्योंमें यह छोटे-बड़ेका भेद कैसा।

विश्ववेदीके इस प्रकार समझानेपर शौरिने उनकी इच्छाके अनुसार काम करनेकी प्रतिज्ञा की। तब मन्त्रीने उनके अन्य भाइयोंको भी वशमें किया। फिर साम-दान आदिके द्वारा उन सबके पुरोहितोंको भी फोड़ लिया। फिर वे चारों पुरोहित महाराज खनित्रके विरुद्ध भयङ्कर पुरश्चरण करने लगे। उनके आभिचारिक कर्मसे चार कृत्याएँ उत्पन्न हुईं। वे सभी विकराल, बड़े-बड़े मुखवाली तथा देखनेमें अत्यन्त भयङ्कर थीं। उनके हाथोंमें भयानक एवं विशाल त्रिशूल था। वे सभी राजा खनित्रके पास आयीं। राजा साधु पुरुष थे, अतः उनके पुण्य-समूहसे वे परास्त हो गयीं और लौटकर उन दुष्टात्मा पुरोहितोंपर ही टूट पड़ीं। कृत्याओंने उन चारों पुरोहितों तथा शौरिके दुष्ट मन्त्री विश्ववेदीको भी जलाकर भस्म कर डाला।

शिवमस्तु द्विजातीनां प्रीतिरस्तु परस्परम्।
समृद्धिः सर्ववर्णानां सिद्धिरस्तु च कर्मणाम्॥
हे लोकाः सर्वभूतेषु शिवा वोऽस्तु सदा मतिः।
यथाऽऽत्मनि यथा पुत्रे हितमिच्छथ सर्वदा॥
समस्तभूतेषु वर्तध्वं हितबुद्धयः।
एतद्वो हितमत्यन्तं को वा कस्यापराध्यते ॥
यत् करोत्यहितं किञ्चित् कस्यचिन्मूढमानसः।
तं समभ्येति तन्नूनं कर्तृगामि फलं यतः॥
इति मत्वा समस्तेषु भो लोकाः कृतबुद्धयः।
सन्तु मा लौकिकं पापं लोकान् प्राप्स्यथ वै बुधाः ॥
यो मेऽद्य स्निह्यते तस्य शिवमस्तु सदा भुवि।
यश्च मां द्वेष्टि लोकेऽस्मिन् सोऽपि भद्राणि पश्यतु ॥
(११७। १२। १९)

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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