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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

इन्द्रने 'एवमस्तु' कहकर आशीर्वाद दिया। राजाका मनोरथ पूर्ण हो गया, अब वे प्रजाका पालन करनेके लिये अपने नगरमें आये। वहाँ वे विधिपूर्वक यज्ञका अनुष्ठान तथा धर्मपूर्वक प्रजाका पालन करने लगे। उस समय इन्द्रकी कृपासे उन्हें एक पुत्र हुआ, जिसका नाम उसके पिताने बलाश्व रखा। फिर राजाने पुत्रको सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रोंकी शिक्षा दी। पिताके मरनेके बाद जब बलाश्व राज्यसिंहासनपर आसीन हुए, तब उन्होंने पृथ्वीके सम्पूर्ण राजाओंको अपने वशमें कर लिया। परन्तु बहुत-से महापराक्रमी राजा, जो सब प्रकारके साधन और धनसे सम्पन्न थे, एक साथ मिल गये और उन्होंने राजा बलाश्वको उनकी राजधानीमें ही घेर लिया। नगरपर घेरा पड़ जानेसे राजा बलाश्वको बड़ा क्रोध हुआ, परन्तु उनका खजाना बहुत थोड़ा रह गया था; इसलिये सैनिक बलकी कमी हो जानेसे वे अत्यन्त विकल हो गये। जब उन्हें और कोई शरण नहीं दिखायी दी, तब वे आर्त हो दोनों हाथ मुँहके आगे करके जोर-जोरसे साँस लेने लगे; फिर तो उनके हाथकी अंगुलियोंके छिद्रसे, मुखकी वायुसे प्रेरित हो सैकड़ों योद्धा, रथ, हाथी और घोड़े निकलने लगे। क्षणभरमें राजाका सारा नगर बहुत बड़ी सेनासे भर गया। तब उस विशाल सेनाके साथ नगरसे बाहर निकलकर उन्होंने उन शत्रु राजाओंको परास्त किया और सबको अपने अधीन करके उनपर कर लगा दिया। करका धमन करने (हाथोंको फूंकने)-से उन्होंने शत्रुओंका दाह करनेवाली सेना उत्पन्न की थी, इसलिये वे राजा बलाश्व करन्धम कहलाने लगे। करन्धम धर्मात्मा, सब प्राणियोंके मित्र तथा तीनों लोकोंमें विख्यात थे। जब राजा सङ्कटमें पड़े थे, तब साक्षात् उनके धर्मने उनके पास पहुँचकर शत्रुनाशक सेना प्रदान की थी और फिर स्वयं ही उसे अदृश्य कर दिया।

राजा वीर्यचन्द्रकी सुन्दरी कन्या वीराने, जो उत्तम व्रतोंका पालन करनेवाली थी, स्वयंवरमें महाराज करन्धमका वरण किया था। उसके गर्भसे महाराजने अवीक्षित नामक पुत्र उत्पन्न किया। उसके इस नामका प्रसङ्ग सुनो। पुत्र उत्पन्न होनेपर राजा करन्धमने उसके ग्रह आदिके विषयमें ज्योतिषियोंसे पूछा। तब ज्योतिषियोंने कहा- 'महाराज! आपका पुत्र उत्तम मुहूर्त, श्रेष्ठ नक्षत्र और शुभ लग्नमें उत्पन्न हुआ है; अत: यह महान् पराक्रमी, परम सौभाग्यवान् तथा अधिक बलशाली होगा। बृहस्पति और शुक्र सातवें स्थानमें तथा चन्द्रमा चौथे स्थानमें रहकर इस बालकको देखते हैं। ग्यारहवें स्थानमें स्थित बुध भी इसको देखते हैं। सूर्य, मङ्गल और शनैश्चरकी इसपर दृष्टि नहीं है; अतः यह सब प्रकारकी सम्पत्तियोंसे युक्त होगा।' ज्योतिषियोंकी बात सुनकर राजा करन्धमके मनमें बड़ी प्रसन्नता हुई। वे बोले-"इसे बृहस्पति और बुध देखते हैं और सूर्य, शनैश्चर एवं मङ्गलसे यह अवीक्षित (अदृष्ट) है; इसलिये इसका नाम 'अवीक्षित' होगा।"

करन्धमके पुत्र अवीक्षित वेद-वेदाङ्गोंके पारङ्गत विद्वान् हुए। उन्होंने मुनिवर कण्वके पुत्रसे सम्पूर्ण अस्त्रविद्याकी शिक्षा ग्रहण की। वे रूपमें अश्विनीकुमार, बुद्धिमें बृहस्पति, कान्तिमें चन्द्रमा, तेजमें सूर्य, धैर्य में समुद्र और क्षमामें पृथ्वीके समान थे। वीरतामें तो उनकी समानता करनेवाला कोई था ही नहीं। एक समयकी बात है, वे वैदिशके राजा विशालकी कन्या वैशालिनीको प्राप्त करनेके लिये उसके स्वयंवरमें गये। वह सुन्दर दाँतोंवाली सुन्दरी समस्त राजाओंकी उपेक्षा करके चली जा रही थी, इतने में ही अवीक्षितने उसे बलपूर्वक पकड़ लिया। उन्हें अपने बलका बहुत अभिमान था। उनके इस कार्यसे अन्य समस्त राजाओंका, जो बहुत बड़ी संख्यामें एकत्रित थे, अपमान हुआ; अतः वे खिन्न होकर एक-दूसरेसे कहने लगे-'अनेक बलशाली राजाओंके होते हुए किसी एकके द्वारा नारीका अपहरण हो और आपलोग उसे क्षमा कर दें तो यह धिक्कार देनेयोग्य बात है। क्षत्रिय वह है, जो दुष्ट पुरुषोंसे सताये जानेवालेकी रक्षा करे, उसकी क्षति न होने दे। जो ऐसा नहीं करते, वे लोग इस नामको व्यर्थ ही धारण करते हैं। संसारमें कौन मनुष्य मृत्युसे नहीं डरता, किन्तु युद्ध न करके भी कौन अमर रह गया है। यह विचारकर शस्त्रधारी क्षत्रियोंको पुरुषार्थका त्याग नहीं करना चाहिये।'

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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