गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
देवताओंमेंसे किसीने यह आकाशवाणी की थी। इसे सुनकर ब्राह्मण, गन्धर्व तथा बालकके माता-पिता बहुत प्रसन्न हुए। तदनन्तर राजकुमार अवीक्षित अपने प्रिय पुत्रको गोदमें ले गन्धर्वोके साथ ही अपने पिताके नगरमें आये। पिताके घरमें पहुँचकर उन्होंने उनके चरणोंमें आदरपूर्वक मस्तक झुकाया तथा लज्जावती भामिनीने भी श्वशुरके चरणों में प्रणाम किया। उस समय राजा करन्धम धर्मासनपर विराजमान थे। अवीक्षितने पुत्रको लेकर कहा-'पिताजी! माताके किमिच्छक- व्रतमें मैंने जो प्रतिज्ञा की थी, उसके अनुसार अब आप गोदमें लेकर इस पौत्रका मुख देखिये।' यों कहकर उन्होंने पिताकी गोदमें बालकको रख दिया और उसके जन्मका सारा वृत्तान्त ठीक-ठीक कह सुनाया। राजा करन्धमके नेत्रोंमें आनन्दके आँसू छलक आये। उन्होंने पौत्रको छातीसे लगाकर अपने भाग्यकी प्रशंसा करते हुए कहा-'मैं बड़ा ही सौभाग्यशाली हूँ।' इसके बाद उन्होंने वहाँ आये हुए गन्धर्वोका अर्घ्य आदिके द्वारा सत्कार किया। उस समय उनको और किसी बातकी याद नहीं रही! उस नगरमें, पुरवासियोंके घर-घरमें महान् आनन्द छा गया। सब प्रसन्न होकर कहते थे—'हमारे महाराजके पोता हुआ है।' राजा करन्धमने हर्षमग्न होकर ब्राह्मणोंको रत्न, धन, गौ, वस्त्र और आभूषण दान किये। वह बालक शुक्ल पक्षके चन्द्रमाकी भाँति प्रतिदिन बढ़ने लगा। उसे देखकर पिता आदिको बड़ी प्रसन्नता होती थी। वह सब लोगोंका प्यारा था। कुछ बड़ा होनेपर उपनयनके बाद उसने आचार्योंके पास रहकर पहले वेदोंकी, फिर समस्त शास्त्रोंकी तथा अन्तमें धनुर्वेदकी शिक्षा ग्रहण की। तत्पश्चात् भृगुपुत्र शुक्राचार्यसे अन्यान्य अस्त्रविद्याओंका ज्ञान प्राप्त किया। वह गुरुके समक्ष विनीतभावसे मस्तक झुकाता तथा सदा उन्हें प्रसन्न रखनेकी चेष्टामें संलग्न रहता था। वह अस्त्रविद्याका ज्ञाता, वेदका विद्वान्, धनुर्वेदमें पारङ्गत तथा सब विद्याओंमें निष्णात था। उस समय मरुत्तसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं था।
राजा विशालको भी जब अपनी पुत्रीका सारा समाचार ज्ञात हुआ तथा दौहित्रकी उत्तम योग्यता सुनायी पड़ी, तब उनका मन आनन्दमें निमग्न हो गया। पौत्रको देखनेसे महाराज करन्धमका मनोरथ पूर्ण हो गया। उन्होंने अनेक यज्ञ किये और याचकोंको बहुत दान दिये। तदनन्तर वन जानेके लिये उत्सुक होकर उन्होंने अपने पुत्र अवीक्षितसे कहा-'बेटा! मैं बूढ़ा हो गया, अब वनमें तपस्याके लिये जाऊँगा। तुम मुझसे यह राज्य ले लो। मैं कृतकृत्य हूँ। तुम्हारा राजतिलक करनेके अतिरिक्त दूसरा कोई कार्य शेष नहीं है।' यह सुनकर राजकुमार अवीक्षितने बड़ी नम्रताके साथ पितासे कहा-'तात! मैं पृथ्वीका पालन नहीं कर सकूँगा। मेरे मनसे लज्जा अभी दूर नहीं होती। आप इस राज्यपर किसी औरको नियुक्त कीजिये। मैं बन्धनमें पड़नेपर पिताके हाथों मुक्त हुआ हूँ, अपने बलसे नहीं। अत: मुझमें क्या पौरुष है। जिनमें पौरुष हो, वे ही इस पृथ्वीका पालन कर सकते हैं। जब मैं अपनी भी रक्षा करने में समर्थ नहीं हूँ, तब इस पृथ्वीकी रक्षा कैसे कर सकूँगा। इसलिये राज्य किसी औरको दे दीजिये।'
पिता बोले-बेटा! पुत्रके लिये पिता और पिताके लिये पुत्र भिन्न नहीं है। यदि पिताने तुम्हें बन्धनसे छुड़ाया तो यही मानना चाहिये कि किसी दूसरेने नहीं छुड़ाया है।
पुत्रने कहा-महाराज! मेरे हृदयका भाव बदल नहीं सकता। जो पिताकी कमायी हुई सम्पत्ति भोगता है, जो पिताके बलसे ही संकटसे उद्धार पाता है तथा पिताके नामपर ही जिसकी ख्याति होती है, अपने गुणोंसे नहीं-ऐसा मनुष्य कभी कुलमें उत्पन्न न हो। जो स्वयं ही धनका उपार्जन करते, स्वयं ख्याति पाते और स्वयं ही संकटोंसे मुक्त होते हैं, ऐसे पुरुषोंकी जो गति होती है, वही मेरी भी हो।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य