गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
वन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्री Zयदि यथावत् इस पुराणका श्रवण करे तो वह समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न पुत्र प्राप्त करती है। इसका श्रवण करनेसे मनुष्य आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, धन, धान्य, पुत्र तथा अक्षय वंश प्राप्त करता है। ब्रह्मन्! इस पुराणको पूरा सुन लेनेके बाद जो आवश्यक कर्तव्य है, वह सुनो। विधिपूर्वक अग्निकी स्थापना करके विद्वान् पुरुष होम करे; पुराणस्वरूप भगवान् गोविन्दका हृदयकमलमें ध्यान करके गन्ध, पुष्प, माला, वस्त्र तथा नैवेद्य आदिके द्वारा पूजन करे। वाचककी पत्नीसहित पूजा करे। तत्पश्चात् उन्हें दूध देनेवाली सवत्सा गौ, खेतीसे भरी हुई भूमि, सुवर्ण और चाँदी आदि वस्तुएँ यथाशक्ति दान करनी चाहिये। राजाओंको उचित है कि उन्हें ग्राम आदि तथा सवारी भी दें। वाचकको संतुष्ट करके उसके द्वारा स्वस्ति कहलायें। जो वाचककी पूजा न करके एक श्लोक भी सुनता है, वह उसके पुण्यका भागी नहीं होता; विद्वानोंने उसे शास्त्रचोर कहा है। मार्कण्डेयपुराणकी समाप्तिपर भारी उत्सव कराये और सब पापोंसे मुक्त होनेके लिये दूध देनेवाली गौ दान करे। साथ ही सपत्नीक ब्राह्मणको वस्त्र, रत्न, कुण्डल, अंगा, पगड़ी, ओढ़ने-बिछौने आदिसहित शय्या, जूता, कमण्डलु, सोनेकी अंगूठी, सप्तधान्य, भोजनके लिये काँसेकी थाली और घृतपात्र दान करे। ऐसा करनेसे मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है। जो उत्तम विधिके साथ इसका श्रवण करता है, वह हजार अश्वमेध और सौ राजसूय-यज्ञोंका फल पाता है। उसे न यमराजसे भय होता है न नरकोंसे। वह मनुष्य सब पापोंसे मुक्त होकर कृतार्थ हो जाता है। इस पृथ्वीपर उसकी वंश-परम्परा सदा कायम रहती है तथा वह इन्द्रलोक एवं सनातन ब्रह्मलोकमें जाता है। वहाँसे पुनः च्युत होकर मनुष्य-योनिमें उसे नहीं आना पड़ता।
इस पुराणके श्रवणसे ही मनुष्य परम योग प्राप्त कर लेता है। नास्तिक, वेदनिन्दक शूद्र, गुरुद्रोही, व्रत-भंग करनेवाले, माता-पिताके त्यागी, सुवर्णचोर, मर्यादा भंग करनेवाले तथा जातिको कलङ्कित करनेवाले पुरुषोंको प्राण कण्ठमें आ जायँ तो भी इस पुराणका उपदेश नहीं देना चाहिये। यदि लोभ, मोह अथवा विशेषतः भयके कारण कोई उक्त मनुष्योंको यह पुराण सुनाता अथवा पढ़ाता है तो वह निश्चय ही नरकमें पड़ता है।*
पुराणश्रवणादेव परं योगवाप्नुयात्।
नास्तिकाय न दातव्यं वृषले वेदनिन्दके।
गुरुविद्वेषके चैव तथा भग्नव्रतेषु च।
पितृमातृपरित्यागे सुवर्णस्तेयिने तथा॥
भिन्नमर्यादके चैव तथैव ज्ञातिदूषके।
एतेषां नैव दातव्यं प्राणैः कण्ठगतैरपि॥
लोभाद्वा यदि वा मोहाद् भयाद्वापि विशेषतः।
पठेद्वा पाठयेद्वापि सा गच्छेन्नरकं ध्रुवम्॥
(१३७। ३२-३५)
जैमिनि बोले-'पक्षियो! महाभारतमें मेरे जिस सन्देहका निवारण नहीं हो सका, उसका निवारण आपलोगोंने मित्रभावसे किया है। ऐसा दूसरा कौन करेगा। आपलोग दीर्घायु, नीरोग तथा उत्तम वृत्तिसे युक्त हों। सांख्ययोगमें आपकी बुद्धि अविचलभावसे स्थित रहे। पिताके शापजनित दोषसे जो आपके मनमें दुःख रहता है, वह दूर हो जाय।
यों कहकर महाभाग जैमिनि उन श्रेष्ठ पक्षियोंकी प्रशंसा करके अपने आश्रमपर चले गये। वे उन पक्षियोंद्वारा किये हुए परम उदार उपदेशका सदा चिन्तन करने लगे।
श्रीमार्कण्डेयपुराण सम्पूर्ण
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य