गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
मार्कण्डेयजी कहते हैं- जैमिने! अरिष्टनेमि के पुत्र पक्षिराज गरुड़ हुए। गरुड़के पुत्र सम्पाति के नाम से विख्यात हुए। सम्पाति का पुत्र शूरवीर सुपार्श्व था। सुपार्श्वका पुत्र कुम्भि और कुम्भि का पुत्र प्रलोलुप हुआ। उसके भी दो पुत्र हुए, उनमें एक का नाम कङ्क और दूसरे का नाम कन्धर था। कन्धर के तार्क्षी नाम की कन्या हुई, जो पूर्वजन्म में श्रेष्ठ अप्सरा वपु थी और दुर्वासा मुनि की शापाग्नि से दग्ध हो पक्षिणी के रूप में प्रकट हुई थी। मन्दपाल पक्षीके पुत्र द्रोणने कन्धरकी अनुमतिसे उस कन्याके साथ विवाह किया। कुछ कालके अनन्तर तार्क्षी गर्भवती हुई। उसका गर्भ अभी साढ़े तीन महीनेका ही था कि वह कुरुक्षेत्र में गयी। वहाँ कौरव और पाण्डवों में बड़ा भयंकर युद्ध छिड़ा था, भवितव्यतावश वह पक्षिणी उस युद्धक्षेत्र में प्रवेश कर गयी। वहाँ उसने देखा-भगदत्त और अर्जुनमें युद्ध हो रहा है। सारा आकाश टिड्डियोंकी भाँति बाणोंसे खचाखच भर गया है। इतने में ही अर्जुनके धनुषसे छूटा हुआ एक बाण बड़े वेगसे उसके समीप आया और उसके पेटमें घुस गया। पेट फट जानेसे चन्द्रमाके समान श्वेत रंगवाले चार अंडे पृथ्वीपर गिरे। किन्तु उनकी आयु शेष थी, अतः वे फूट न सके; बल्कि पृथ्वीपर ऐसे गिरे, मानो रूईके ढेरपर पडे हों। उन अण्डोंके गिरते ही भगदत्तके सुप्रतीक नामक गजराजकी पीठसे एक बहुत बड़ा घंटा भी टूटकर गिरा, जिसका बन्धन बाणोंके आघातसे कट गया था। यद्यपि वह अण्डोंके साथ ही गिरा था, तथापि उन्हें चारों ओरसे ढकता हुआ गिरा और धरतीमें थोड़ा-थोड़ा धंस भी गया।
युद्ध समाप्त होनेपर जहाँ घंटेके नीचे अण्डे पड़े थे, उस स्थानपर शमीक नामके एक संयमी महात्मा गये। उन्होंने वहाँ चिड़ियों के बच्चोंकी आवाज सुनी। यद्यपि उन सबको परम विज्ञान प्राप्त था, तथापि निरे बच्चे होनेके कारण अभी स्पष्ट वाक्य नहीं बोल सकते थे। उन बच्चोंकी आवाजसे शिष्योंसहित महर्षि शमीकको बड़ा विस्मय हुआ और उन्होंने घंटेको उखाड़कर उसके भीतर पड़े हुए उन माता, पिता और पंखसे रहित पक्षिशावकोंको देखा। उन्हें इस प्रकार भूमिपर पड़ा देख महामुनि शमीक आश्चर्यमें डूब गये और अपने साथ आये हुए द्विजोंसे बोले- 'देवासुर संग्राम में जब दैत्योंकी सेना देवताओं से पीड़ित होकर भागने लगी, तब उसकी ओर देखकर स्वयं विप्रवर शुक्राचार्य ने यह ठीक ही कहा था- 'ओ कायरो! क्यों पीठ दिखाकर जा रहे हो। न जाओ, लौट आओ। अरे! शौर्य और सुयशका परित्याग करके ऐसे किस स्थानमें जाओगे, जहाँ तुम्हारी मृत्यु न होगी। कोई भागे या युद्ध करे; वह तभीतक जीवित रह सकता है, जबतक के लिये पहले विधाता ने उसकी आयु निश्चित कर दी है। विधाता के इच्छानुसार जबतक जीवकी आयु पूर्ण नहीं हो जाती, तबतक उसे कोई मार नहीं सकता। कोई अपने घरमें मरते हैं, कोई भागते हुए प्राणत्याग करते हैं, कुछ लोग अन्न खाते और पानी पीते हुए ही कालके गाल में चले जाते हैं। इसी प्रकार कुछ लोग ऐसे हैं, जो भोग-विलासका आनन्द ले रहे हैं, इच्छानुसार वाहनोंपर विचरते हैं, शरीरसे नीरोग हैं तथा अस्त्र- शस्त्रोंसे जिनका शरीर कभी घायल नहीं हुआ है; वे भी यमराजके वशमें हो जाते हैं। कुछ लोग निरन्तर तपस्यामें ही लगे रहते थे, किन्तु उन्हें भी यमराजके दूत उठा ले गये। निरन्तर योगाभ्यासमें प्रवृत्त रहनेवाले लोग भी शरीरसे अमर न हो सके।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य