गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
पुत्रने कहा- देवताओंसे यों कहकर अनसूया देवी उस ब्राह्मणीके घर गयीं और उसके कुशल पूछनेपर उन्होंने अपनी, अपने स्वामीकी तथा अपने धर्मकी कुशल बतायी।
अनसूया बोलीं- कल्याणी! तुम अपने स्वामीके मुखका दर्शन करके प्रसन्न तो रहती हो न? पतिको सम्पूर्ण देवताओंसे बड़ा मानती हो न? पतिकी सेवासे ही मुझे महान् फलकी प्राप्ति हुई है तथा सम्पूर्ण कामनाओं एवं फलोंकी प्राप्तिके साथ ही मेरे सारे विघ्न भी दूर हो गये। साध्वी! मनुष्यको पाँच ऋण सदा ही चुकाने चाहिये। अपने वर्णधर्मके अनुसार धनका संग्रह करना आवश्यक है। उसके प्राप्त होनेपर शास्त्रविधिके अनुसार उसका सत्पात्रको दान करना चाहिये। सत्य, सरलता, तपस्या, दान और दयासे सदा युक्त रहना चाहिये। राग-द्वेषका परित्याग करके शास्त्रोक्त कर्मोंका अपनी शक्तिके अनुसार प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक अनुष्ठान करना चाहिये। ऐसा करनेसे मनुष्य अपने वर्णके लिये विहित उत्तम लोकोंको प्राप्त होता है। पतिव्रते! इस प्रकार महान् क्लेश उठानेपर पुरुषोंको प्राजापत्य आदि लोकोंकी प्राप्ति होती है; परन्तु स्त्रियाँ केवल पतिकी सेवा करनेमात्रसे पुरुषोंके दुःख सहकर उपार्जित किये हुए पुण्यका आधा भाग प्राप्त कर लेती हैं स्त्रियोंके लिये अलग यज्ञ, श्राद्ध या उपवासका विधान नहीं है। वे पतिकी सेवामात्रसे ही उन अभीष्ट लोकोंको प्राप्त कर लेती हैं। अतः महाभागे! तुम्हें सदा पतिकी सेवामें अपना मन लगाना चाहिये; क्योंकि स्त्रीके लिये पति ही परम गति है। पति जो देवताओं, पितरों तथा अतिथियोंकी सत्कारपूर्वक पूजा करता है, उसके भी पुण्यका आधा भाग स्त्री अनन्यचित्तसे पतिकी सेवा करनेमात्रसे प्राप्त कर लेती है।*
* नास्ति स्त्रीणां पृथग्यज्ञो न श्राद्धं नाप्युपोषितम्।
भर्तृशुश्रूषयैवैतान् लोकानिष्टान् व्रजन्ति हि॥
तस्मात् साध्वि महाभागे पतिशुश्रूषणं प्रति।
त्वया मतिः सदा कार्या यतो भर्ता परा गतिः॥
यद्देवेभ्यो यच्च पित्रागतेभ्यः कुर्याद्भर्त्ताभ्यर्चनं सत्क्रियातः।
तस्याप्यर्द्ध केवलानन्यचित्ता नारी भुङ्क्ते भर्तृशुश्रूषयैव ॥
(१६। ६१-६३)
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य