गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
पिताने कहा- 'पुत्रो! अपने पुण्यात्मा पिताका वह बालक धन्य है, जिसके गुणोंका वर्णन तुम- जैसे गुणवान् लोग परोक्षमें भी कर रहे हो। संसारमें कुछ लोग ऐसे हैं, जो शास्त्रोंके ज्ञाता तो हैं, किन्तु उनमें शीलका अभाव है। कुछ लोग शीलवान् तो हैं, किन्तु शास्त्रज्ञानसे रहित हैं। जिस पुरुषमें शास्त्रोंका ज्ञान और उत्तम शील दोनों गुण समानरूपसे हों, मैं उसीको विशेष धन्यवादका पात्र समझता हूँ। जिसके मित्रोचित गुणोंका मित्रलोग और पराक्रमका शत्रुलोग भी सत्पुरुषोंके बीचमें वर्णन करते हों, उसी पुत्रसे पिता वास्तवमें पुत्रवान् होता है। ऋतध्वज तुमलोगोंके उपकारी मित्र हैं। क्या तुमलोगोंने भी उनके चित्तको प्रसन्न करनेके लिये कभी उनका कोई मनोरथ सिद्ध किया है? जिसके यहाँसे याचक कभी विमुख नहीं जाते और मित्रका कार्य कभी सिद्ध हुए बिना नहीं रहता, वही पुरुष धन्य है! उसीका जीवन और जन्म धन्य है! मेरे घरमें जो सुवर्ण आदि रत्न, वाहन, आसन तथा और कोई वस्तु उनके लिये रुचिकर हो, वह सब तुमलोग निःशङ्क होकर उन्हें दे सकते हो। जो सुहृदोंका उपकार करते, शत्रुओंको हानि पहुँचाते तथा मेघके समान सर्वत्र दानकी वर्षा करते हैं, विद्वान्लोग उनकी सदा ही उन्नति चाहते हैं।
पुत्र बोले- पिताजी! वे तो कृतकृत्य हैं, उनका कोई क्या उपकार कर सकता है? उनके घरपर आये हुए सभी याचक सदा ही पूजित होते हैं, उनकी सभी कामनाएँ पूर्ण की जाती हैं। उनके घरमें जो रत्न हैं, वे हमारे पातालमें कहाँ हैं। वैसे वाहन, आसन, यान, भूषण और वस्त्र यहाँ कहाँ उपलब्ध हो सकते हैं। उनमें जो विज्ञान है, वह और किसीमें नहीं है। पिताजी! वे बड़े-बड़े विद्वानोंके भी सब प्रकारके संदेहोंका भलीभाँति निवारण करते हैं। हाँ, एक कार्य उनका अवश्य है; किन्तु वह ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव आदि सर्वसमर्थ परमेश्वरोंके सिवा हमलोगोंके लिये सर्वथा असाध्य है।
पिताने कहा- 'पुत्रो! असाध्य हो या साध्य, किन्तु मैं उस उत्तम कार्यको अवश्य सुनना चाहता हूँ; विद्वान् पुरुषोंके लिये कौन-सा कार्य असाध्य है। जो अपने मन, बुद्धि तथा इन्द्रियोंको संयममें रखकर उद्यममें लगे रहते हैं, उन मनुष्योंके लिये इस पातालमें या स्वर्गमें कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है, जो अज्ञात, अगम्य अथवा अप्राप्य हो। चींटी धीरे-धीरे चलती है; तथापि यदि वह चलती रहे तो सहस्रों योजन दूर चली जा सकती है। इसके विपरीत गरुड़ तेज चलनेवाले होनेपर भी यदि आगे पैर न बढ़ावें तो एक पग भी नहीं जा सकते। उद्योगी मनुष्योंके लिये कुछ गम्य और अगम्य नहीं होता, उनके लिये सब एक-सा है। कहाँ यह भूमण्डल और कहाँ ध्रुवका स्थान, जिसे पृथ्वीपर होते हुए भी राजा उत्तानपादके पुत्र ध्रुवने प्राप्त कर लिया! इसलिये पुत्रो! महाभाग राजकुमारको जिस वस्तुकी आवश्यकता हो, बतलाओ, जिसे देकर तुम दोनों मित्र-ऋणसे उऋण हो सको।*
* नाविज्ञातं न चागम्यं नाप्राप्यं दिवि चेह वा।
उद्यतानां मनुष्याणं यतचित्तेन्द्रियात्मनाम्॥
योजनानां सहस्राणि व्रजन् याति पिपीलिकः।
अगच्छन् वैनतेयोऽपि पादमेकं न गच्छति॥
उद्यतानां मनुष्याणां गम्यागम्यं न विद्यते।
क्व भूतलं क्व च ध्रौव्यं स्थाने यत् प्राप्तवान् ध्रुवः।
उत्तानपादनृपतेः पुत्रः सन् भूमिगोचरः ॥
तत् कथ्यतां महाभाग कार्यवान् येन पुत्रकौ।
स भूपालसुतः साधुर्येनानृण्यं भवेत वाम् ॥
(अ० २०। ३७-४०)
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य