गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
उस सुन्दरी बाला ने भी मस्तकपर काले धुंघराले बालोंसे सुशोभित, उभरी हुई छाती, स्थूल कंधों और विशाल भुजाओंवाले राजकुमारको देखकर साक्षात् कामदेव ही समझा। उनके आते ही वह सहसा उठकर खड़ी हो गयी; किन्तु उसका मन अपने वशमें न रहा। वह तुरंत ही लज्जा, आश्चर्य और दीनताके वशीभूत हो गयी। सोचने लगी- 'ये कौन हैं? देवता, यक्ष, गन्धर्व, नाग अथवा विद्याधर तो नहीं आ गये? या ये कोई पुण्यात्मा मनुष्य हैं?' यों विचारकर उसने लंबी साँस ली और पृथ्वीपर बैठकर सहसा मूर्च्छित हो गयी। राजकुमारको भी कामदेवके बाणका आघात-सा लगा। फिर भी धैर्य धारण करके उन्होंने उस तरुणीको आश्वासन दिया और कहा-'डरनेकी आवश्यकता नहीं।' वह स्त्री, जिसे उन्होंने पहले महलमें जाते हुए देखा था, ताड़का पंखा लेकर व्यग्रतापूर्वक हवा करने लगी। राजकुमारने आश्वासन देकर जब उससे मूर्छाका कारण पूछा, तब वह बाला कुछ लज्जित हो गयी। उसने अपनी सखीको सब बातें बता दीं। फिर उस सखीने उसकी मूर्छाका सारा कारण, जो राजकुमारको देखनेसे ही हुई थी, विस्तारपूर्वक कह सुनाया।
वह स्त्री बोली- प्रभो! देवलोकमें विश्वावसु नामसे प्रसिद्ध एक गन्धर्वोके राजा हैं। यह सुन्दरी उन्हींकी कन्या है। इसका नाम मदालसा है। वज्रकेतु दानवका एक भयङ्कर पुत्र है, जो शत्रुओंका नाश करनेवाला है। वह संसारमें पातालकेतुके नामसे प्रसिद्ध है, उसका निवासस्थान पातालके ही भीतर है। एक दिन यह मदालसा अपने पिताके उद्यानमें घूम रही थी। उसी समय उस दुरात्मा दानवने विकारमयी माया फैलाकर इस असहाय बालिकाको हर लिया। उस दिन मैं इसके साथ नहीं थी। सुना है, आगामी त्रयोदशीको वह असुर इसके साथ विवाह करेगा; किन्तु जैसे शूद्र वेदकी श्रुतिका अधिकारी नहीं है, उसी प्रकार वह दानव भी इस सर्वाङ्गसुन्दरी मेरी सखीको पानेके योग्य नहीं है। अभी कलकी बात है, यह बेचारी आत्महत्या करनेको तैयार हो गयी थी। उस समय कामधेनुने आकर आश्वासन दिया- 'बेटी! वह नीच दानव तुम्हें नहीं पा सकता। महाभागे! मर्त्यलोकमें जानेपर इस दानवको जो अपने बाणोंसे बींध डालेगा, वही तुम्हारा पति होगा। बहुत शीघ्र यह सुयोग प्राप्त होनेवाला है।' यह कहकर सुरभि देवी अन्तर्धान हो गयीं। मेरा नाम कुण्डला है। मैं इस मदालसाकी सखी, विन्ध्यवान् की पुत्री और वीर पुष्करमालीकी पत्नी हूँ। शुम्भने मेरे स्वामीको मार डाला, तबसे उत्तम व्रतोंका पालन करती हुई दिव्य गतिसे भिन्न-भिन्न तीर्थों में विचरती रहती हूँ। अब मैं परलोक सुधारनेमें ही लगी हूँ। दुष्टात्मा पातालकेतु आज वाराहका रूप धारण करके मर्त्यलोकमें गया था। सुननेमें आया है, वहाँ मुनियोंकी रक्षाके लिये किसीने उसको अपने बाणोंका निशाना बनाया है। मैं इस बातका ठीक-ठीक पता लगानेके लिये ही गयी थी, पता लगाकर तुरंत लौट आयी। सचमुच ही किसीने उस अधम दानवको बाणसे बींध डाला है।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य