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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

यह सुनकर हमें बड़ी व्यथा हुई। हमारे शरीरमें कम्प और मनमें भय छा गया, हम सहसा बोल उठे- 'इसमें तो बड़ा कष्ट है, बड़ा कष्ट है। यह काम हमसे नहीं हो सकता। कोई भी समझदार मनुष्य दूसरे के शरीर के लिये अपने शरीर का नाश अथवा वध कैसे करा सकता है। अतः हमलोग यह काम नहीं करेंगे।' हमारी ऐसी बातें सुनकर वे मुनि क्रोधसे जल उठे और अपनी लाल-लाल आँखोंसे हमें दग्ध करते हुए- से पुनः इस प्रकार बोले-'अरे! मुझसे इसके लिये प्रतिज्ञा करके भी तुमलोग यह कार्य नहीं करना चाहते; अतः मेरे शापसे दग्ध होकर तुमलोग पक्षियोंकी योनिमें जन्म लोगे।' हमसे यों कहकर उन्होंने शास्त्रके अनुसार अपनी अन्त्येष्टि-क्रिया की- और्ध्वदैहिक संस्कार की विधि पूर्ण की। इसके बाद वे उस पक्षीसे बोले- 'खगश्रेष्ठ! अब तुम निश्चिन्त होकर मुझे भक्षण करो। मैंने अपना यह शरीर तुम्हें आहारके रूपमें समर्पित कर दिया है। पक्षिराज! जबतक अपने सत्यका पूर्णरूपसे पालन होता रहे, यही ब्राह्मणका ब्राह्मणत्व कहलाता है। ब्राह्मण दक्षिणायुक्त यज्ञों अथवा अन्य कर्मों के अनुष्ठानसे भी वह महान् पुण्य नहीं प्राप्त कर सकते, जो उन्हें सत्यकी रक्षा करनेसे प्राप्त होता है।"

एतावदेव विप्रस्य ब्राह्मणत्वं प्रचक्षते।
यावत् पतगजात्यग्रय स्वसत्यपरिपालनम्।
न यज्ञैर्दक्षिणावद्भिस्तत् पुण्यं प्राप्यते महत्।
कर्मणान्येन वा विप्रैर्यत् सत्यपरिपालनात्॥

महर्षि का यह वचन सुनकर पक्षिरूपधारी इन्द्र के मन में बड़ा विस्मय हुआ। वे अपने देवरूप में प्रकट होकर बोले-'विप्रवर! मैंने आपकी परीक्षाके लिये यह अपराध किया है। शुद्ध बुद्धिवाले महर्षि! आप इसके लिये मुझे क्षमा करें। बताइये, आपकी क्या इच्छा है जिसे मैं पूर्ण करूँ? अपने सत्य वचनका पालन करनेसे आपके प्रति मेरा बड़ा प्रेम हो गया है। आजसे आपके हृदयमें इन्द्र सम्बन्धी ज्ञान प्रकट होगा। अब आपकी तपस्या और धर्म में कोई विघ्न नहीं उपस्थित होगा। यों कहकर जब इन्द्र चले गये, तब हमलोगोंने क्रोधमें भरे हुए महामुनि पिताजीके चरणोंमें मस्तक रखकर प्रणाम किया और इस प्रकार कहा- 'तात! हम मृत्युसे डर रहे थे। महामते ! आप हम दीनोंके अपराधको क्षमा करें। हमलोगोंको जीवन बहुत ही प्रिय है। चमड़े, हड्डी और मांसके समूह तथा पीब और रक्तसे भरे हुए इस शरीरमें जहाँ हमें तनिक भी आसक्ति नहीं रखनी चाहिये, वहीं हमारी इतनी आसक्ति है। महाभाग! काम, क्रोध आदि दोष जीवके प्रबल शत्रु हैं। इनसे विवश होकर यह लोक जिस प्रकार मोहके वशीभूत हो जाता है, उसे आप सुनें। यह शरीर एक बहुत बड़ा नगर है। प्रज्ञा ही इसकी चहारदीवारी है, हड्डियाँ ही इसमें खम्भेका काम देती हैं। चमड़ा ही इस नगरकी दीवार है, जो समूचे नगरको रोके हुए है। मांस और रक्तके पङ्क का इसपर लेप चढ़ा हुआ है। इस नगरमें नौ दरवाजे हैं। इसकी रक्षामें बहुत बड़ा प्रयास करना होता है। नस-नाड़ियाँ इसे सब ओरसे घेरे हुए हैं। चेतन पुरुष ही इस नगरके भीतर राजाके रूपमें विराजमान है। उसके दो मन्त्री हैं-बुद्धि और मन। वे दोनों परस्पर विरोधी हैं और आपसमें वैर निकालने के लिये दोनों ही यत्न करते रहते हैं। चार ऐसे शत्रु हैं, जो उस राजाका नाश चाहते हैं। उनके नाम हैं- काम, क्रोध, लोभ तथा मोह। जब राजा उन नवो दरवाजोंको बंद किये रहता है, तब उसकी शक्ति सुरक्षित रहती है और वह सदा निर्भय बना रहता है; वह सबके प्रति अनुराग रखता है, अतः शत्रु उसका पराभव नहीं कर पाते।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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