गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
अनिर्देश्यं तथा चान्यदर्धमात्राश्रितं परम्॥
अविकार्यक्षयं दिव्यं परिणामविवर्जितम्।
तवैव च परं रूपं यन्न शक्यं मयेरितुम्॥
न चास्येन न वा जिह्वाताल्वोष्ठादिभिरुच्यते।
इन्द्रोऽपि वसवो ब्रह्मा चन्द्रार्कौ ज्योतिरेव च ॥
विश्वावासं विश्वरूपं विश्वेशं परमेश्वरम्।
सांख्यवेदान्तवेदोक्तं बहुशाखास्थिरीकृतम्॥
अनादिमध्यनिधनं सदसन्न सदेव तु।
एकं त्वनेकं नाप्येकं भवभेदसमाश्रितम्॥
अनाख्यं षड्गुणाख्यं च षट्काख्यं त्रिगुणाश्रयम्।
नानाशक्तिमतामेकं शक्तिवैभविकं परम्॥
सुखासुखमहत्सौख्यं रूपं तव विभाव्यते।
एवं देवि त्वया व्याप्तं सकलं निष्कलं च यत्॥
अद्वैतावस्थितं ब्रह्म यच्च द्वैते व्यवस्थितम्।
उक्त तीन मात्राओंसे परे जो अर्धमात्रा के आश्रित विन्दु है, उसका वाणीद्वारा निर्देश नहीं किया जा सकता। वह अविकारी, अक्षय, दिव्य तथा परिणामशून्य है। देवि! वह आपका ही स्वरूप है, जिसका वर्णन मेरे द्वारा असम्भव है। मुख, जीभ, तालु और ओठ आदि किसी भी स्थानसे उसका उच्चारण नहीं हो सकता। इन्द्र, वसु, ब्रह्मा, चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि भी वही है। वही सम्पूर्ण जगत् का निवासस्थान, जगत्स्वरूप, जगत् का ईश्वर एवं परमेश्वर है। सांख्य, वेदान्त और वेदोंमें उसीका प्रतिपादन हुआ है। अनेकों शाखाओंमें उसीके स्वरूपका निश्चय किया गया है। वह आदि-अन्तसे रहित है तथा सत्-असत् से विलक्षण होता हुआ भी सत्स्वरूप ही है। अनेक रूपोंमें प्रतीत होता हुआ भी एक है और एक होकर भी जगत् के भेदोंका आश्रय लेकर अनेक है। वह नाम-रूप से रहित है। छ: गुण, छ: वर्ग तथा तीन गुण भी उसीके आश्रित हैं। वह एक ही परम शक्तिमान् तत्त्व है, जो नाना प्रकारकी शक्ति रखनेवाले जीवोंमें शक्तिका सञ्चार करता रहता है। सुख, दुःख तथा महासौख्य - सब उसी अर्धमात्रारूप तुरीयपद के स्वरूप हैं। इस प्रकार तीनों मात्राओंसे अतीत जो तुरीय धामरूप ब्रह्म है, वह तुम्हींमें अभिव्यक्त होता है। देवि! इस तरह सकल, निष्कल, अद्वैतनिष्ठ तथा द्वैतनिष्ठ जो ब्रह्म है, वह भी तुमसे व्याप्त है।
येऽर्था नित्या ये विनश्यन्ति चान्ये
ये वा स्थूला ये च सूक्ष्मातिसूक्ष्माः।
ये वा भूमौ येऽन्तरिक्षेऽन्यतो वा
तेषां तेषां त्वत्त एवोपलब्धिः।
यच्चामूर्तं यच्च मूर्तं समस्तं
यद्वा भूतेष्वेकमेकं च किञ्चित्।
यदिव्येऽस्ति क्ष्मातले खेऽन्यतो वा
तत्सम्बद्धं त्वत्स्वरैर्व्यञ्जनैश्च॥
जो पदार्थ नित्य हैं, जो विनाशशील हैं, जो स्थूल हैं तथा जो सूक्ष्मसे भी अत्यन्त सूक्ष्म हैं, जो इस पृथ्वीपर, अन्तरिक्षमें या और किसी स्थानमें देखे जाते हैं, उन सबकी उपलब्धि तुम्हींसे होती है। मूर्त, अमूर्त, समस्त भूत अथवा एक-एक भूत जो कुछ भी धुलोक, पृथ्वी, आकाश या अन्य स्थानमें उपलब्ध होता है, वह सब तुम्हारे ही स्वर और व्यञ्जनोंसे सम्बद्ध है।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य