गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
मदालसाने कहा- महाराज! यह तो व्यावहारिक कल्पना है; लौकिक व्यवहार चलानेके लिये कोई-सा नाम रख लिया जाता है, इससे पुरुषका कुछ भी सम्बन्ध नहीं है। आपने भी जो नाम रखे हैं, वे भी निरर्थक ही हैं। कैसे, सो बतलाती हूँ; सुनिये। ज्ञानीलोग पुरुष (आत्मा) को व्यापक बतलाते हैं। आपने प्रथम पुत्रका नाम विक्रान्त रखा है, इसके अर्थपर विचार कीजिये। क्रान्तिका अर्थ है गति। एक स्थानसे दूसरे स्थानमें जानेको गति कहते हैं। जब इस देहका ईश्वर आत्मा सर्वत्र व्यापक है, तब वह दूसरी जगह जा नहीं सकता; अतः उसका नाम विक्रान्त रखना मुझे निरर्थक ही जान पड़ता है। पृथ्वीनाथ! दूसरे पुत्रका जो सुबाहु नाम रखा गया है, वह भी व्यर्थ ही है; क्योंकि आत्मा निराकार है, उसको बाँह कहाँसे आयी। तृतीय पुत्रका जो अरिमर्दन नाम नियत किया गया है, मेरी समझसे वह भी असम्बद्ध ही है। इसका कारण भी सुनिये। अरिमर्दनका अर्थ है-शत्रुका मर्दन करनेवाला। जब सब शरीरोंमें एक ही आत्मा रहता है, तब उसका कौन शत्रु है और कौन मित्र। मूर्तिमान् भूतोंके द्वारा मूर्तिमान् भूतोंका ही मर्दन होता है। आत्मा तो अमूर्त है, उसका मर्दन कैसे हो सकता है। क्रोध आदि आत्मासे पृथक् रहते हैं; अत: यह अरिमर्दनकी कल्पना निरर्थक ही है। यदि व्यवहारका भलीभाँति निर्वाह करनेके लिये ऐसे असङ्गत नामोंकी कल्पना हो सकती है तो 'अलर्क' नाममें ही क्यों आपको निरर्थकता प्रतीत होती है?
रानी मदालसाके द्वारा इस प्रकार भलीभाँति समझाये जानेपर परम बुद्धिमान् महाराज ऋतध्वजने अपनी प्राणवल्लभाको यथार्थवादिनी मानकर कहा- 'तुम्हारा कथन सत्य है।' तदनन्तर उसने पहले पुत्रोंकी भाँति उसको भी ज्ञानजनक बातें सुनानी आरम्भ की। तब राजाने उसे रोककर कहा।
राजा बोले- अरी यह क्या करती हो? पहले पुत्रोंकी भाँति इसे भी ज्ञानका उपदेश देकर मेरी वंश-परम्पराका उच्छेद करनेपर क्यों तुली हो। यदि तुम्हें मेरा प्रिय कार्य करना हो और यदि मेरी बातोंको मानना तुम्हें उचित प्रतीत होता हो तो मेरे इस पुत्रको प्रवृत्तिमार्गमें लगाओ। देवि! ऐसा करनेसे कर्ममार्गका उच्छेद नहीं होगा तथा पितरोंके पिण्डदानका लोप नहीं होगा। जो पितर देवलोकमें हैं, जो तिर्यग्योनिमें पड़े हैं, जो मनुष्ययोनिमें एवं भूतवर्गमें स्थित हैं, वे पुण्यात्मा हों या पापात्मा, जब भूख-प्याससे विकल होते हैं तो अपने कर्मों में लगा हुआ मनुष्य पिण्डदान तथा जलदानके द्वारा उन्हें तृप्त करता है। इसी तरह वह देवताओं और अतिथियोंको भी सन्तुष्ट रखता है। देवता, मनुष्य, पितर, भूत, प्रेत, गुह्यक, पक्षी, कृमि और कीट आदि भी मनुष्यसे ही जीविका चलाते हैं; अतः सुन्दरि! तुम मेरे पुत्रको ऐसा उपदेश दो, जिससे इहलोक और परलोकमें उत्तम फल देनेवाले क्षत्रियोचित कर्तव्यका उसे ठीक-ठीक ज्ञान हो।
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- वपु को दुर्वासा का श्राप
- सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
- धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
- राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
- पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
- जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
- जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
- पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
- दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
- दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
- अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
- पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
- तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
- ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
- मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
- मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
- श्राद्ध-कर्म का वर्णन
- श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
- त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
- सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
- योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
- अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
- मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
- प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
- स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
- दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
- जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
- श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
- भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
- भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
- स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
- पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
- राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
- तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
- रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
- चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
- वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
- सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
- मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
- देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
- सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
- इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
- देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
- धूम्रलोचन-वध
- चण्ड और मुण्ड का वध
- रक्तबीज-वध
- निशुम्भ-वध
- शुम्भ-वध
- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
- देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
- सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
- नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
- रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
- भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
- सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य