नई पुस्तकें >> पतंजलि और आयुर्वेदिक योग पतंजलि और आयुर्वेदिक योगविनोद वर्मा
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आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धान्तों के अनुसार बात, पित्त और कफ में से किसी एक के असन्तुलन से मानसिक अवस्था में तो परिवर्तन आता ही है, उससे शरीर पर कई बुरे प्रभाव पड़ते हैं। पतंजलि योग में वर्णित अष्टांग योग के प्रथम तीन अंगों यम, नियम और आसन से त्रिदोष सन्तुलन में बड़ी सहायता मिलती है। योग और आयुर्वेद दोनों ही मूल रूप से शरीर से सम्बन्धित हैं। इनके आधारभूत सिद्धान्त सांख्य पर आधारित हैं आयुर्वेदिक योग पतंजलि के अष्टांग योग से ही ग्रहण किया गया है। इसका आधारभूत उद्देश्य है-अच्छा स्वास्थ्य, शारीरिक-मानसिक सन्तुलन और जीवन का सम्पूर्ण आनन्द।
डॉ. विनोद वर्मा की इस पुस्तक का उद्देश्य योग और आयुर्वेद दोनों के माध्यम से शरीर को स्वस्थ रखना है। दूसरा उद्देश्य प्राचीन ज्ञान सागर से ऐसी नई एवं सरल विधियों का विकास करना है जिनसे मानव स्वास्थ्य, शान्ति और सोमनस्य प्राप्त कर सके। इस पुस्तक को पाँच खंडों में विभाजित किया गया है। पहले खंड में भारतीय परम्परा योग और आयुर्वेद पर प्रकाश डाला गया है। दूसरे खंड में पतंजलि के योग सूत्रों की व्याख्या की गई है और तीसरे खंड में आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धान्त तथा चौथे खंड में योग और आयुर्वेद का एकीकरण एवं पाँचवें खंड में आयुर्वेद योग पर विस्तृत चर्चा की गई है।
डॉ. विनोद वर्मा की इस पुस्तक का उद्देश्य योग और आयुर्वेद दोनों के माध्यम से शरीर को स्वस्थ रखना है। दूसरा उद्देश्य प्राचीन ज्ञान सागर से ऐसी नई एवं सरल विधियों का विकास करना है जिनसे मानव स्वास्थ्य, शान्ति और सोमनस्य प्राप्त कर सके। इस पुस्तक को पाँच खंडों में विभाजित किया गया है। पहले खंड में भारतीय परम्परा योग और आयुर्वेद पर प्रकाश डाला गया है। दूसरे खंड में पतंजलि के योग सूत्रों की व्याख्या की गई है और तीसरे खंड में आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धान्त तथा चौथे खंड में योग और आयुर्वेद का एकीकरण एवं पाँचवें खंड में आयुर्वेद योग पर विस्तृत चर्चा की गई है।
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