नई पुस्तकें >> सरगोशियाँ सरगोशियाँममता तिवारी
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
नज्में जो दिल से निकली हैं दिल को छूती हैं करीब हैं हर वक्त मेरे आईना हैं खुश्बू हैं जज्बात हैं ....मेरी बेहद खास हैं मैं किसी रवायत की अनुयायी नहीं हूँ। तभी कहीं काफिया नहीं मिलता कभी मीटर से बाहर हो जाती हूँ ...नहीं हूँ मैं व्यवस्थित किस्म की पोएट... जब जिंदगी एकदम संतुलित ना हों तो आप उसे कविताओं, कहानियों में कैसे व्यवस्थित दिखा सकते हैं... फिर ये तो झूठ होगा ....सिर्फ छपने के लिए उन शब्दों को उठा के एक लाइन से दूसरी में शिफ्ट कर दूं... क्या वाकई में जिंदगी में जो रिश्ता हमें रास नहीं आया...अपनी मर्जी से हम उसे इधर से उधर शिफ्ट कर सकते हैं ? नहीं ना तो आप मुझे मेरी टूटी-फूटी बेतरतीब कविताओं के साथ स्वीकार करें।
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