नई पुस्तकें >> जल उठे चराग़ जल उठे चराग़आनंद अमितेष
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अंजानी और अपरिचित गंधों से भरा हुआ है दृश्य से अदृश्य की यात्रा का यह मार्ग। फिर बंध ही जाते हैं पैरों में अनगिनत घूंघर किन्हीं सूक्ष्म रूपों में कि फिर जल उठते हैं चराग और प्रकाशित हो उठते हैं मार्ग उसीके परम आलोकों से। तब उस असीम से मिलन की चाह में उठते हैं हृदय में प्रार्थनाओं के तीक्ष्ण वेग और डूब जाती हैं आँखें आनंद के आंसुओं में। उसी अतिरेक और अहोभावों की असहाय सी स्थितियों में तत्क्षण उतरने लगते हैं अस्तित्व के संगीत; उठते हैं जीवन के महाशिखर और उतरता है कोई काव्य अपनी त्वरा में रात-रानियों की सी गंध लिए।
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