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प्रेम-लहरी
प्रेम-लहरी
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2018 |
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 12297
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आईएसबीएन :9789388183048 |
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘प्रेमलहरी’ इतिहास के बड़े चौखटे में कल्पना और जनश्रुतियों के धागों से बुनी हुई प्रेमकथा है। यह इतिहास नहीं है, न ही इसका वर्णन किसी इतिहास पुस्तक में मिलता है। लेकिन जनश्रुति में इस कथा के अलग-अलग हिस्से या अलग-अलग संस्करण अकसर सुने जाते हैं। इस प्रेम-आख्यान के नायक-नायिका हैं शाहजहाँ के राजकवि और दारा शिकोह के गुरु पंडितराज जगन्नाथ और मुगल शाहज़ादी गौहरआरा उर्फ लवंगी। मध्यकालीन इतिहास में हिन्दू-मुस्लिम प्रेम-आख्यान तो कई मिलते हैं, लेकिन किसी शाहज़ादी की किसी ब्राह्मण आचार्य और कवि से यह अकेली प्रेम कहानी है जो मुगल दरबार की दुरभिसन्धियों के बीच आकार लेती है। ‘गंगालहरी’ खुद पंडितराज जगन्नाथ का अद्भुत संस्कृत काव्य है जिसमें कहीं-कहीं खुद उनके प्रेम की व्यंजना निहित है। प्रचलित बतकहियों की गप्प समाजविज्ञान से मिल जाए तो उससे एक बड़ा सच भी सामने आ जाता है। इस उपन्यास में यह हुआ है। मुगल शाहज़ादियों को न शादी की इजाज़त थी न प्रेम करने की। ऐसे में चोरी-छुपे प्रेम-सुख तलाश करना उनकी मजबूरी रही होगी। इस उपन्यास में ऐसे कुछ विवरण आए हैं। यह उपन्यास इतिहास की एक फैंटेसी है, जिसमें किंवदन्तियों के आधार पर मध्यकालीन सत्ता-संरचना के बीच दो धर्मों और दो वर्गों के बीच न पाटी जा सकनेवाली खाली जगह में प्रेम का फूल खिलते दिखाया गया है।
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