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कृष्णकली

शिवानी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 12361
आईएसबीएन :9788183619189

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''लुक एट दीज़ ब्यूटीज माई डियर,'' आण्टी उसके कान के पास सिर सटाकर फुसफुसायी, ''कुछ कहना मत, अफ्रीका के रैटल स्नेक-से ही गुस्से-बाज़ होते हैं ये! मैंने जब इन्हें पहली बार देखा तो दुर्भाग्य से जोर से हँस पड़ी थी। बाप रे बाप!

खजूर के पेड़-से लम्बें एक ऐसे ही नंग-धड़ंग खबीस ने अपना पूरा चिमटा ही मेरी पठि में घुसेड़ दिया था।''
सारे शरीर में भस्म पोते, पेरिस की लेटेस्ट हेयरस्टाइल के 'बुफों' में जटानट सँवारे अपनी भयावह नग्नता की ओर से एकदम उदासीन, नंगे साधुओं का वह जत्था ऐसी अकड़ से सीना ताने चला जा रहा था जैसे सबके सब किमख्वाब की अढ़ुश्य अचकन और जरी के साफ़े बाँधे चले जा रहे हों।

''अभी तूने कुम्भ का मेला देखा होता तो शायद पगला ही जाती,'' आण्टी कहती जा रही थी, ''लगता है, सारी दुनिया के मुण्ड यही आकर जुट गये हैं। चल, अब चूड़ियों की दुकान पर चलें। आज तो मैं कलाई-भर काले लच्छे पहनूँगी और चार-चार चूड़ियाँ सुहाग की लिये बिना उठूँगी ही नहीं।''

''अब देखना कली,'' विवियन कहने लगी, ''बिसातियों की दुकान के सामने जाकर आण्टी पगला जाएँगी। हर साल न जाने क्या-क्या खरीदकर बटोर ले जाती हैं-तुलसी की माला, चूड़ियाँ, गंगाजली।''
''और इलायचीदाना?'' बॉवी ने पूछा।
''अरे ही, वह तो आण्टी की वीकनेस है, बस चले तो सेर-भर एक साथ मुँह में डाल लें। इस बार इन्हें उस ओर एकदम मत जाने देना बॉबी।''

देखते-ही-देखते आण्टी ने नीली-हरी चूड़ियों से अपनी गोल-गोल गोरी कलाई ही नहीं भरीं, कली और विवियन को भी रंगीन लच्छे पहना दिये।
कली आज तक चूड़ियों की मीठी खनक से एकदम ही अपरिचित थी। कान्वेण्ट में कभी तीज-त्योहार पर उसकी कोई सहपाठिनी लुक-छिपकर चूड़ियाँ पहन भी आती, तो रेवरेण्ड मदर की एक ही घुड़की से सहम तत्काल उतार आया को दे देती।
''अभी तो नहा-धोकर पण्डे से चन्दन का तिलक लगवाऊँगी,'' आण्टी बोलीं, ''तब देखना मुझे कली, पक्की हिन्दुआनी बनूँगी आज!''
''डोण्ट बी सिली आण्टी,'' विवियन बोली, ''इस जीन्स के साथ चन्दन लगाकर पूरी कार्टून लगोगी। वैसे ही हमारी यूनिवर्सिटी के लड़कों का वह झुण्ड तुम्हें घूर रहा है।"

''इस उमर में इस दुमंजिले ओल्डफ़ैशण्ड मकान को अब यूनिवर्सिटी के लड़के नहीं घूर सकते विवियन, तुम निश्चिन्त रहो। वह तो आज साथ में यह जो लिज टेलर को ले आयी हूँ, उसे ही घूर रहे होंगे। चलो, तुम्हें कैसा डर लग रहा है, मैं तो हूँ साथ में।''
आण्टी तेजी से हाँफती दोनों को खींचती दौड़-सी लगाने लगीं।
''हे बॉबी,'' जान-बूझकर ही शायद छोकरों की भीड़ में से एक पतली-पतली

टाँगों और बीटनीक केके बालोंवाले लड़के ने चीखकर बीबी को पुकारा। उसकी हाँक को अनसुनी कर बॉबी तेजी से चलता रहा-
''आई से हे लकी बग,'' एक अश्लील ठहाका बॉबी का पीछा करने लगा।
''देख रही हो आण्टी, सब पीछे-पीछे आ रहे हैं, अब जल्दी से बजरे पर चलो,'' विवियन जूरी तरह घबरा रही थी।
पर कली नपे-तुले क़दम रखती ऐसे आत्मविश्वास से चली जा रही थी, जैसे किसी फ़ौजी टुकड़ी की सलामी ग्रहण कर रही हो। यह तो उसके लिए नित्य का दाल-भात था। रंगीन बजरे पर खड़े साइमन की विचित्र फ़िल्मी वेशभूषा देखकर पहले कली पहचान ही नहीं पायी। जब निकट पहुँचकर पहचाना, तो होंठों पर हाथ धरकर जोर से हँस पड़ी।
विवियन बार-बार पीछे मुड़कर भीड़ में भटक गयी। उद्दण्ड सहपाठियों की भीड़ को न देख, आश्वस्त होकर बड़ी ललक से बजरे पर चढ़ने लगी। एक मोटा-सा काठ का तख्ता, जो उसकी लचीली देह के भार से रोप ब्रिज-सा काँपने लगा था, बजरे तक सीढ़ी के रूप में मोटी रस्सी से बँधा था।
काँपते डगमग होते तख्त पर पैर रखने में सहमती कली किनारे पर ही खड़ी रह गयी, तो बॉबी उसे सहारा देने बढ़ आया जैसे बाँहों में भरकर ही उठा लेगा। उसका हाथ पकड़कर वह डगमगाती बजरे तक पहुँच गयी। रंगीन लहरदार जोधपुरी साफ़े में साइमन किसी रियासत के रजवाड़े का दमकीला मृत्य-सा चमक रहा था।
''यह पोशाक इसे आण्टी ने पिछले साल बनवा दी थी। कुछ भी कहो बीबी हमारा साइमन इस ड्रेस में एकदम विदेशी चलचित्र के किसी इण्डियन हीरो-सा लगता है। क्यों, है ना कली?''
अकड़ से साइमन और भी तेज बजरा चलाने लगा। आण्टी अपनी चौरस कमर पर दोनों हाथ धर, उसके पीछे खड़ी होकर बोलीं, ''ठीक संगम में जाकर बजरा लगाना साइमन, जहाँ सब नहा रहे हैं, समझे?''
''वह तो समझ गया आण्टी, अब तुम भी समझ लो। वहाँ पर यह साइमन-साइमन कर अपने फौजी कमाण्ड मत देना। नहीं तो घाट के हिन्दू हमें लाठी लेकर घाट के बाहर खदेड़ देंगे। साइमन का नाम इस घाट के भीतर बदलना ही होगा। साइमन, कुछ घण्टों तक तुम रहोगे श्याम कुमार,'' विवियन ने कहा।
और बच्चों की भाँति सबने तालियाँ बजाकर नये नाम का स्वागत किया।
''हाय कैसा रोमणिटक नाम है, श्यामकुमार। मैं तो कहती हूँ अब इसका यही नाम रहने दिया जाये। क्यों, क्या खयाल है साइमन? इट गोस विद योर टरबन।''

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