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भास्कराचार्य

गुणाकर मुले

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :292
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 12407
आईएसबीएन :9788126719778

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"भास्कराचार्य : प्राचीन भारत की गणित और ज्योतिष की विरासत"

भास्कराचार्य प्राचीन भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण गणितज्ञ-खगोलविद् हैं। ईसा की बारहवीं सदी में (1114 ई.)आज से लगभग नौ सौ साल पहले जन्मे भास्कराचार्य ने भारतीय गणित व ज्योतिष को लगभग चरम पर पहुँचा दिया था। विद्वानों का मानना है कि उसके बाद भारत में गणित व ज्योतिष का विकास बहुत कम हुआ। उनकी लीलावती’ पुस्तक के बारे में आज भी गाँवों में बुजुर्ग लोग बात करते मिल जाते हैं। इस प्रसंग में एक दिलचस्प घटना का उल्लेख लेखक ने पुस्तक के शुरू में किया भी है। भारत की देशीय वैज्ञानिक चेतना के पैरोकार तथा अन्वेषक गुणाकर मुले ने गहन अध्यवसाय तथा शोध के बाद भास्कराचार्य के जीवनव्यक्तित्व तथा कृतित्च से सम्बन्धित कुछ दुर्लभ तथ्यों की खोज कर इस पुस्तक की रचना कीऔर गणित के क्षेत्र में सदियों पहले किए गए उनके कार्यों को सरल सुगम भाषा में प्रस्तुत किया है।

पुस्तक का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि इसमें केवल भास्कराचार्य ही नहींबल्कि उनके आविर्भाव से पहले भारत में गणित के विकास और उनके बाद की स्थिति की भी विस्तृत विवेचना की गई है जिससे यह पुस्तक भारतीय गणित ज्योतिष के इतिहास का एक विस्तृत सूचनात्मक खाका भी हमें देती है।

पुस्तक में भास्कराचार्य की जीवनगाथा के सूत्रों को जोड़ने के अलावा उनकी उपलब्ध पुस्तकों – लीलावती’, ‘बीजगणित’, ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ तथा करण कुतूहल’ पर विस्तृत अध्याय हैं जिनसे हमें इन पुस्तकों की विषय-वस्तु की सम्यक् जानकारी मिलती है और साथ में है विस्तृत परिशिष्ट। जिससे हमें भारतीय गणित ज्योतिष के बारे में अद्यतन सूचनाएँ तथा गणित ज्योतिष के आधुनिक इतिहासकारोंआदि का परिचय प्राप्त होता है। मसलन परिशिष्ट के एक अध्याय में बताया गया है कि राजा सवाई जयसिंह द्वारा बनवाई वेधशालाओं के बाद भारत में आकाश के अध्ययन अवलोकन के लिए निर्मित साधनों में कितनी प्रगति हुई है।

कहना न होगा कि भारत में गणित-ज्योतिष के विकास-क्रम पर यह एक सम्पूर्ण-ग्रन्थ हैसाथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि यह स्वर्गीय गुणाकर जी की उन कुछ पुस्तकों में एक है जिन पर वे अपने अन्तिम दिनों में काम कर रहे थेहमारा सौभाग्य कि यह पुस्तक उनके ही हाथों पूरी हो चुकी थी।

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