नाटक-एकाँकी >> चतुर्भाणी चतुर्भाणीडॉ. मोतीचन्द्रवासुदेवशरण अग्रवाल
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चतुर्भाणी
‘चतुर्भाणी’ एक विलक्षण क्लैसिक है : मूल में बोलचाल की संस्कृत और लोक-जीवन की छटाओं का रोचक और नाटकीय इज़हार है और अनुवाद में बनारसी बोली का चटपटा रस-भाव। बरसों पहले ब.व. कारन्त ने उज्जैन के कालिदास समारोह के लिए ‘चतुर्भाणी’ की रंग प्रस्तुति की थी। डॉ. मोतीचन्द्र द्वारा अनुवादित और डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा विस्तार से समझायी गयी इस कृति को नये संस्करण में प्रस्तुत करते हुए हमें गहरा संतोष है। भारतीय परम्परा की दुव्र्याख्या के इस अभागे समय में यह कृति याद दिलाती है कि हमारी परम्परा में कैसी रसिकता और लोक-जीवन का उन्मुक्त रचाव रहा है जो कहीं से भी किसी संकीर्णता में बाँधा नहीं जा सकता।
- अशोक वाजपेयी
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