आलोचना >> इतिहास और आलोचना इतिहास और आलोचनानामवर सिंह
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इतिहास और आलोचना स्वातंत्रयोत्तर हिन्दी साहित्य के प्रथम दशक में साहित्य के प्रगतिशील मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए किए जानेवाले संघर्ष का ऐतिहासिक दस्तावेज है। आरम्भ के आठ निबन्धों में उन व्यक्ति-स्वातंत्रयवादी साहित्यिक मान्यताओं का तर्क पूर्ण खंडन किया गया है जो शीतयुद्ध की राजनीति के प्रभाव में साहित्य के अन्दर वास्तविकता के स्थान पर ‘अनुभूति’ को, वस्तु के उस रूप को और व्यापकता से अधिक गहराई को स्थापित करने का प्रयत्न कर रही थीं।
अन्त के चार निबन्धों में इतिहास के एक नए दृष्टिकोण के साथ साहित्यिक इतिहास के पुनर्मूल्यांकन की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है, जिससे समकालीन समस्याओं के समाधान के लिए एक वस्तुगत सैद्धांतिक आधार उपलब्ध होता है। नई कविता और छायावाद के कुछ पक्षों की व्यावहारिक आलोचना इस ग्रंथ का अतिरिक्त आकर्षण है। कुल मिलाकर विचारों की ताजगी और द्वन्द्वात्मक विवेचन शैली के कारण इतिहास और आलोचना आज भी प्रासंगिक पुस्तक है।
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