कहानी संग्रह >> राज समाज और शिक्षा राज समाज और शिक्षाकृष्ण कुमार
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शिक्षा की बहसें प्रायः सरकारी नीतिपत्रों में दिए गए वायदों, घिसे-पीटे आदर्श वाक्यों या फिर प्राचीन व्यवस्था के मिथकों के इर्द-गिर्द घुमती हैं। स्कूल और कालेजों की दैनिक चर्चा हो या शिक्षाशास्त्र की पाठ्य पुस्तकें-दोनों ही बच्चे के जीवित संसार और समाज के व्यापक संघर्षों से बहुत दूर जा पड़ी हैं।
इस पुस्तक ने शिक्षा की बहसों को एक नई शब्दावली ही नहीं, एक नई अर्थवत्ता भी दी है। कोई आश्चर्य नहीं कि यह पुस्तक उमस के बीच ताजी हवा के झोंके का पर्याय बन सकने की क्षमता रखती है। शिक्षा की सच्चाई को यह कृति राज्य-व्यवस्था और सामाजिक जीवन की जटिल बुनावट के बीच ढूँढती है। इसे पढ़ते हुए हम बच्चों के प्रति अपनी स्वाभाविक चिंता को एक राजनैतिक आधार और वैज्ञानिक अभिव्यक्ति पाते हुए देखते हैं।
शिक्षा को कृष्ण कुमार ने बहुत व्यापक अर्थ में लिया है, जिसमें बच्चों के लालन-पालन से लेकर उन्हें सामाजिक मूल्योबोध देनेवाली अनेक सूक्ष्म प्रक्रियाएँ शामिल हैं। जाहिर है, इस पुस्तक का पाठक वर्ग शिक्षा के नीतिकारों, प्रशिक्षकों और छात्रों तक सीमित नहीं है। उसमें ऐसे सभी माता-पिता भी शामिल हैं जो अपनी संतान के भविष्य को समाज की संरचना और राजनीति के चरित्र से अलग नहीं मानते।
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