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घर का भेदी
घर का भेदी
प्रकाशक :
ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स |
प्रकाशित वर्ष : 2010 |
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ :
पेपर बैक
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पुस्तक क्रमांक : 12544
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आईएसबीएन :1234567890123 |
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
"बतरा की कार पहचानते हो?"
"हां।"
"तो फिर?"
"वे सब फालतू बातें हैं। अहम बात ये है कि मैं आठ बजे का यहां पहुंचा हुआ एक
बार भी ऊपर से नीचे नहीं उतरा था। पार्टी के सारे मेहमान मेरी इस बात के गवाह
हैं। और फिर...."
"फिर क्या?"
"तुम कौन होते हो मेरे से ऐसी जवावतलबी करने वाले?"
"मामे आ गये।"--एकाएक रमाकान्त बोला।
सुनील ने ड्राईंगरूम में खुले दरवाजे की तरफ निगाह उठाई तो पाया कि उधर से कई
पुलिसिये भीतर दाखिल हो रहे थे।
"गुलेगुलजार"-सुनील बोला- “तुम्हारी शिकायत विल्कुल वाजिब है। हम कोई नहीं
होते। लेकिन जो होते हैं वो अब यहां पहुंच गये हैं इसलिये उनकी किसी जवाबतलबी
से पहले ही तुम अपने एक्ट को पालिश कर लो। इस सिलसिले में बाथरूम का एक फेरा
लगा आना भी तुम्हारे काम आयेगा।"
"बाथरूम का फेरा!" -वो सकपकायां-“वो किसलिये?"
“जाकर नलके के नीचे सिर दोगे तो काफी सारा नशा उतर जायेगा। पुलिस को बयान होश
में दोगे तो फायदे में रहोगे।".
“पुलिस....मेरा बयान लेगी?" . . .
“जरूर लगी! तुम्हारा क्या, सब का लेगी। कत्ल के वक्त के आसपास जो कोई भी यहाँ
मौकायेवारदात पर मौजूद था, उसका बयान होगा। आज की रात यहीं गुजरेगी,
प्यारेलाल।".
अपने दल बल के साथ पुलिस का जो इन्स्पेक्टर वहां पहुंचा, वो, सुनील की
अपेक्षानुसार, प्रभुदयाल नहीं था। वो एक कोई बत्तीस साल का, गोरा चिट्टा,
क्लीनशेव्ड, अच्छे नयन नक्श वाला शख्स था, जिसके नाम और सूरत से सुनील पहले
से वाकिफ था। उसका नाम सुखबीर चानना था और सुनील के उसको जानता होने की वजह
उसका एक कारनामा था जिसका वर्णन बमय उसकी तसवीर नगर के हर अखबार में मुखपृष्ठ
पर छपा था और जिसकी वजह से उसकी बारी से पहले सब-इन्स्पेक्टर से इन्स्पेक्टर
की प्रमोशन हुई थी। पिछले साल एक शाम को जब वो विशालगढ़
हाइवे पर तैनात था तो उसने अपनी आंखों के सामने कछ हथियारबन्द युवकों को एक
व्यक्ति की नई टयोटा कार छीन कर भागते देखा था। उसने अपनी पुलिस जीप पर उनका
पीछा किया था लेकिन उसकी जीप टयोटा की स्पीड का मुकाबला नहीं कर सकती थी। जीप
बहुत पिछड़ गयी थी तो उसने उसका पीछा छोड़ कर एक मोटरसाइकल वाले से लिफ्ट ली
थी और अकेला ही फिर उन बदमाशों के पीछे लग लिया था। मोटरसाइकल ताकतवार इंजन
वाली थी और उसका ड्राइवर उसे तेज रफ्तार से चलाने में दक्ष था इसलिये दस
किलोमीटर आगे उसने कार वालों को जा पकड़ा था। उसने उन्हें ललकारा था और रुकने
की धमकी दी थी तो वो जवाब में गोलियां चलाने लगे थे। नतीजतन घबराकर मोटरसाइकल
वाले ने मोटरसाइकल रोक दी थी। तब चानना खुद मोटरसाइकल चलाता अकेला उनके पीछे
लगा था और अपनी जान पर खेल कर उसने उन्हें फरार हो जाने से रोका था। अपनी
सर्विस रिवॉल्वर से उसने दो बदमाशों को शूट कर दिया था और खुद अपने कंधे पर
गोली लगी होने के वावजूद तीसरे को धर दबोचा था लेकिन चौथा भाग निकलने में
कामयाब हो गया था। अलबत्ता तीसरे की डण्डा परेड से हासिल हुई जानकारी की बिना
पर दो दिन बाद वो भी पकड़ा गया था। बाद में मालूम हआ था कि वो,बदमाश उस तरह
से कार छीनने की कई वारदातों के लिये जिम्मेदार थे। चानना की दस दिन बाद
हस्पताल से छुट्टी हो गयी और बीस दिन और उसे घर पर आराम करना पड़ा था। स्वस्थ
होकर जब उसने ड्यूटी जायन की तो उसकी वर्दी पर दो की जगह तीन सितारे चमक रहे
थे।
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