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घर का भेदी
घर का भेदी
प्रकाशक :
ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स |
प्रकाशित वर्ष : 2010 |
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ :
पेपर बैक
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पुस्तक क्रमांक : 12544
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आईएसबीएन :1234567890123 |
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
रमाकान्त आगे बढ़कर भीड़ में जा मिला। लगभग फौरन ही अर्जुन उसके करीब पहुंचा।
"क्या खबर है?" -सुनील बोला। "अभी खास कोई नहीं।"-अर्जुन बोला।
"कोई बात नहीं। मैं और रमाकान्त अभी यहां से चले जायेंगे। लेकिन तुमने पीछे
ठहरना है।"
“वो तो ठहरना ही है। मैं पार्टी का मेहमान हूं। मेहमानों की लिस्ट में मेरा
नाम दर्ज है। मुझे तो पुलिस की इजाजत होगी तो तभी यहां से जा पाऊंगा। लेकिन
आप और रमाकान्त कैसे चले जायेंगे? कोई जाने देगा आपको यहां से?"
"क्यों नहीं जाने देगा? हमारा तो लिस्ट में नाम नहीं है।"
"फिर भी जब आप यहां मौजूद हैं तो...."
"तुम्हें लेने आये थे। तुम फंसे हुए हो, हमारे साथ नहीं जा सकते, इसलिये
वापिस जा रहे हैं। पूछे जाने पर तुमने भी यही कहना है।"
"आप तो कब से यहां हैं।"
"कब से नहीं हैं। अभी आये हैं। समझा?"
"मैं तो समझा लेकिन....” .
"पुलिस वालों को हिदायत है कि यहां से कोई जाने न पाये। यहां कोई आने न पाये,
ऐसी हिदायत जाहिर है कि उन्हें नहीं होगी। इसलिये हमारी आमद की खबर उन्हें न
लगना क्या बड़ी बात है?" .
“लेकिन जाती बार....?" ।
"देखेंगे क्या होता है! कोई रोकेगा तो इन्स्पेक्टर से बात करेंगे। बहरहाल
तूने इस बात की तसदीक करनी है कि हम तुझे लेने के लिये अभी यहां आये थे।"
"ठीक है।"
“अर्जुन, यहां तूने चुपचाप अपने जैसे तमाम मेहमानों को स्क्रीन करना है और
मालूम करना है कि जैसे पंकज सक्सेना ने साफ-साफ मरने वाले से अपनी रंजिश
जाहिर की थी, वैसे क्या कोई और भी शख्स यहां था जिसे कि मरने वाले से रंजिश
थी। समझ गया?"
"हां"
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