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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : ठाकुर प्रसाद एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


"रिवॉल्वर कातिल साथ ही ले गया होगा।". .
"हो सकता है। वैसे पुलिस का इरादा पिछवाड़े के जंगल के झाड़-झंखाड़ टटोलने का भी है।
“अभी टटोले नहीं गये?"
"नहीं। वो मैटल डिटेक्टर की मदद से होने वाला काम है . जो कि कल रात तफ्तीश के लिये पहुंची पार्टी के पास नहीं था।" .
"हूं। और?"
“बस।"
"ठीक है। अब तू मेरे साथ नेपियन हिल चल । बाकी बातें रास्ते में होंगी।”
"आज्ञा शिरोधार्य, गुरुजी।".
नेपियन हिल पर भावना बतरा उन्हें कोठी के ड्राईंगरूम में मिली।
सुनील ने नोट किया कि उसकी विधवा वाली पोशाक की बाबत रमाकान्त का खयाल एकदम गलत निकला था। वो सफेद नहीं काली साड़ी पहने थी जो कि किसी परछत्ती पर लावारिस पड़े ट्रॅक में से निकाली गयी तो हरगिज नहीं मालूम होती थी। साड़ी से मैच करता उसका काला ब्लाउज बहुत झीने कपड़े का था जिसमें से काली अंगिया साफ नुमायां हो रही थी। उसने बालों . . को कस कर जूड़े की सूरत में बांधा हुआ था और चेहरा किसी भी प्रकार के मेकअप से महरूम था। बहरहाल उसका उस वक्त का रखरखाव किसी के जनाजे में शरीक होने के लिये भी उतना ही मौजू था जितना कि किसी पार्टी में जाने के लिये।

सुनील ने उसे अपना और अर्जुन का परिचय दिया।
"तो तुम हो सुनील!"--वो तत्काल बोली- “जो कि ‘ब्लास्ट' के रिपोर्टर हो?"
"मुझे ये फन हासिल है।" --सनील सिर नवा कर बोला।
“मुझे नहीं मालूम था कि बेबी की पार्टी में तुम भी इनवाइटिड थे।"
"मैं नहीं था। मैं बाद में आया था।"
"क्यों?"
“क्योंकि जहां पुलिस पहुंचती है वहां प्रेस ने पहुंचना ही होता है।"
"और पहुंच कर क्या करना होता है? किस्से-कहानियां गढ़नी होती हैं? ऐसी बातें कहनी होती हैं जिनका कोई वजूद नहीं होता?"
“ऐसा क्या कह दिया मैने?" .
“तुम्हें नहीं मालूम? मैंने तुम्हारी सूरत तक नहीं देखी थी और तुम ने किसी को कह दिया कि तुम मेरे से मिले थे और मैंने उन्हें कहा था कि मेरा....मेरा किसी से....लव अफेयर था?"
"आपको ऐतराज किस बात से है? ऐसा कहे जाने से या इस बात से कि मैंने ऐसा कहा?"
"क्या मतलब?"
"आप ऐसे किसी लव अफेयर से इनकार करती हैं?". . . .
"सवाल मेरे इनकार या इकरार का नहीं है। सवाल ये है कि .. मैंने ऐसा कब कहा?"
"आपने कहा। बराबर कहा। उस शख्स ने भी कहा जिसे आप 'कोई' कह रही हैं।"
"कब कहा?"
“आप ही याद कीजिये।"
उसने अपलक सुनील की तरफ देखा।
"दीवारों के भी कान होते हैं, मैडम। इसलिये जिस बात का आम होना मंजूर न हो, उसे आगा पीछा देख कर जुबान पर लाना चाहिये।"
वो हड़बड़ाई, उसने बेचैनी से पहलू वदला और फिर दबे स्वर में बोली-“कोई सुन रहा था?"
“अब मैं क्या कहूं? वैसे ये बात अपने ब्वायफ्रेंड को भी समझाइयेगा।"
"ब्वायफ्रेंड!"
"संजीव सूरी।"
“क....कौन सी वात?"
“यही कि दीवारों के भी कान होते हैं।"
"यानी कि वहां भी कोई सुन रहा था?"
“आप तो खुद ही सर्वज्ञ हैं।"

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