रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
|
|
अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
तभी मेड नीना मैनुअल वहां पहुंची।
“मैडम”-वो बोली-“नीचे एक पुलिस वाला आया है। आपको पूछ रहा है।"
“आती हूं।"
"नीना"-लेखक बोला-"तुम्हारा एम्पलायर तो मर गया। अब मेरे लिये काम करोगी?"
“सागर साहब" -भावना बोली- “आपको फुल टाइम मेड की कहां जरूरत है?"
“जरूरत है, भई । लिखते वक्त कितनी ही बार मुझे पेन में स्याही भरनी पड़ती है।
ये भरा करेगी।....फिर भी वक्त बचेगा तो टूथपेस्ट की ट्यूब पर कैप लगा दिया
करेगी।"
नीना हंसी। भावना ने आंखें तरेरकर उसे देखा। वो तत्काल संजीदा हुई और फिर
वहां से रुखसत हो गयी। "मैं अभी आती हूं।" भावना बोली। सुनील ने सहमति में
सिर हिलाया। मेड के पीछे भावना भी वहां से रुखसत हो गयी।
"मैं भी चलता हूं।" -लेखक जमहाई लेता हुआ बोला-“तुम लोग तो अभी यहां ठहरोगे!"
"मैडम के लौटने तक तो ठहरेंगे ही।" -सुनील लापरवाही से बोला।
“जो नावल मैं यहां ढूंढ रहा था, उसका नाम 'अहसान फरामोश' है।....भावना को
बोलना, कहीं से हाथ लग जाये तो मुझे पहुंचा दे।"
“बोल देंगे।"
"शुक्रिया।" वो दरवाजे की तरफ बढ़ा।
“एक मिनट रुकिये, बन्दानवाज ।" -सुनील व्यग्र भाव से बोला।
वो ठिठका, घूमा, उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की तरफ देखा।
“आपने मेरे एक सवाल को बड़ी सफाई से टाल दिया था। शायद इसलिये क्योंकि मैडम
यहां थीं और आपको उनकी मौजूदगी में उस सवाल का जवाब देना मुनासिब नहीं लगा
था।"
"कौन से सवाल का?"
"किसने किया होगा बतरा साहब का कत्ल ?"
"मुझे नहीं मालूम।"
"मैंने आपका अन्दाजा पछा है। अब फिर ये न कहियगा कि इस बावत आपका कोई अन्दाजा
नहीं। अन्दाजा हमशा, हर किसी का होता है।"
"मेरा नहीं है।"
“सर, गिव मी युअर वाइल्डेस्ट गैस। बात को टालिये नहीं।"
"मेरा कोई अन्दाज़ा नहीं है लेकिन जिस किसी ने भी ये काम किया है, एक
सद्कार्य किया है।"
"अच्छा !"
"हां।"
"आपके जवाब से मकतूल की बाबत आपके खयालात की झलक मिलती है।"
“खयालात सिर्फ मेरे ही नहीं हैं, मेरे भाई। ये मरने वाले की बदकिस्मती थी कि
उसकी जिन्दगी में उसके बारे में कोई भला बोल बोलने वाला चिराग लेकर ढूंढे भी
नहीं मिलने वाला था।"
"आपको भी नापसन्द था?"
“मेरी बात और है। वो मेरा दोस्त था। दोस्त के अवगुणों को नजरअन्दाज करना
दोस्त का फर्ज होता है। फिर मेरे में बर्दाश्त का माद्दा भी आम लोगों से कुछ
ज्यादा ही है। वो कैसा भी था, होशियार था। होशियार और चालाक । चालाक और
बेरहम। अपनी इन खूबियों को, या खामियों को, उसने बहुत कामयाबी से अपनी
जिन्दगी के बहुत छोटे से वक्फे में कैश कर दिखाया था। वो कहते हैं न कि एण्ड
जस्टीफाइज दि मीन्स । अन्त भला सो भला। उसका अपना मतलब हमेशा हल होता
था इसलिये लोग उसकी बावत क्या सोचते थे, क्या कहते थे, इसकी उसे परवाह नहीं
थी। इसीलिये अपने पीछे इतने दुश्मन छोड़ के मरा । ऐसे ही एक दुश्मन ने कल
उसकी जिन्दगी को फुलस्टाप लगा दिया। दुश्मन कोई दो चार हों तो मैं किसी का
नाम लूं, उसकी बाबत अपना कोई अन्दाजा बताऊं। लेकिन यहां तो दुश्मनों की तादाद
का कोई ओर छोर ही नहीं है।....उसने तो जैसे सारे शहर के सम्पन्न लोगों को
चूना लगाने की कसम खाई हुई थी।"
|