रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
"कहां से आ रही हो?"
"सरकारी हस्पताल से। जहां कि पोस्टमार्टम हुआ था।"
... "क्या पता चला?"
"पोस्टमार्टम से तसदीक हुई है कि खोपड़ी में पैवस्त गोली बत्तीस कैलीबर की
रिवॉल्वर से चलाई गयी थी और कत्ल तकरीबन साढ़े नौ बजे हुआ था। गोली कोई दस
फुट के फासले से चलाई गयी थी, वो सीधी दिमाग में जा घुसी थी और मकतूल की
तत्काल मौत की वजह बनी थी। गोली के खोपड़ी में घुसने के ऐंगल से अब ये भी
स्थापित हो गया है कि वो खुली खिड़की के बाहर से ही चलाई गयी थी।"
“आई सी। लाश क्या अब वापिस यहां लाई जायेगी?"
"नहीं। वहीं से लिंक रोड वाले श्मशान घाट पर ले जाई जायेगी। मैंने दीदी से इस
वाबत फोन पर बात कर ली थी। शाम सात बजे क्रियाकर्म होगा।" ..
“आई सी।"
"तुम लोग कहां से आ रहे हो?"
“तुम्हारे यहां ही गये थे।"-जवाब अर्जुन ने दिया।
"किसलिये?" “भई, अखबार वाले हैं। खबर सूंघने गये थे।"
"क्या सूँघा?" -
"मेरी भावना से बात हुई थी" -सुनील बोला--"वो चाहती है कि कातिल का पता लगाने
की कोशिश हम भी करें।"
"तुम ऐसा कर सकते हो?"
“कर तो सकते हैं, स्वीटहार्ट, बशर्ते कि कोई पर्दादारी न हो, कोई गलतबयानी न
हो।"
“ऐसा कौन करेगा?”
"कोई भी कर सकता है। सच पूछो तो तुम भी कर सकती हो।"
"मैं भी?"
"कल रात जीजा साली की किस वाली बात को मामूली और आम करार देकर तुमने यही तो
किया था।"
वो सकपकाई।
“तुम्हें यकीन नहीं" वो बोली-"कि वो मामूली बात थी?"
"तुम्हारे तूफानेहमदम को यकीन है?"
"किसे?"
“पंकज सक्सेना को जिसकी बाबत कल रात तुमने खुद तसदीक की थी कि वो तुम्हारा
खास है। स्टेडी है।" .
"ओह!"
"उस किस की जो सफाई कल रात तुमने हमें दी थी, वो. . पंकज को भी दी होगी। उसे
भी तो कहा होगा कि तोहफा मिलने पर बच्चे-यानी कि तुम-बड़ों के साथ-यानी कि
मकतूल लिपट ही जाते हैं और जोश में उन्हें किस कर ही लेते हैं!"
“कहा था। और उसने मेरी बात पर यकीन किया था। लाइक ए गुड ब्याय।" ,
“यानी कि बात आयी गयी हो गयी थी। उसकी मकतूल से कोई रंजिश बाकी नहीं रही थी?"
"हां।"
“फिर बतरा की मौत के बाद उसने उसे क्यों रावण कहा और बाकायदा खुशी का इजहार
क्यों किया कि रावण मारा गया था?"
"उसने ऐसा कहा था?"
"बिल्कुल कहा था। मैं गवाह पेश कर सकता है। बल्कि गवाह की क्या जरूरत है। खुद
ही पूछना अपने जमूरे से कि उसने ऐसा कहा था या नहीं कहा था?" .
"मैं जरूर पूछूंगी।"-वो दृढ़ता से बोली।
"जरूर पूछना लेकिन पहले उस किस वाली बात का खुलासा तो करो....बल्कि पहले एक
और काम करो।"
"क्या?"
“कार से वाहर निकलो।"
"क्या!"
"ताकि लैवल पर बात हो सके।"
"ओह! सारी!" वो कार से बाहर निकली।
“यहां बैठो।" सुनील मोटरसाइकल की सीट थपथपाता हुआ बोला।
"थैं क्यू।" .
"देखो, जानेजहां" -सुनील गम्भीरता से बोला-“तुम एक बालिग, खुदमुख्तार लड़की
हो इसलिये मुझे तुम्हारे किसी से भी कैसे भी ताल्लुकात से कुछ लेना-देना
नहीं। अगर तुम्हारे और तुम्हारे जीजा के बीच में कुछ था तो मुझे उससे भी कुछ
लेना देना नहीं। लेकिन हकीकत मुझे इसलिये मालूम होनी चाहिये क्योंकि हकीकत
जाने बिना उस मंजिल तक नहीं पहुंचा जा सकता जिस पर तुम्हारी बहन चाहती है कि
मैं पहुंच कर दिखाऊं। ये बात अब जगविदित है कि उसकी अपनी बीवी से नहीं बनती
थी इसलिये उसका साथ रहती गैरशादीशुदा साली की तरफ झुकाव हो जाना कोई बड़ी बात
नहीं थी। खासतौर से तब जबकि एतराज करने वाला भी कोई नहीं था। भावना भी नहीं,
क्योंकि उसका ऐसे किसी एतराज का मुंह नहीं बनता था।"
"क्यों नहीं बनता था?"
"जवाब का नाम संजीव सूरी है। और कोई जानता न जानता, तुम यकीनन जानती थीं कि
तुम्हारी बहन के लच्छन तुम्हारे जीजा के लच्छनों से कोई जुदा नहीं थे। कढ़ाई
पतीले से कहती अच्छी नहीं लगती कि वो काला था।"
“पॉट कालिंग द कैटल ब्लैक।"-अर्जुन ने अपना ज्ञान बघारा।
“अब कबूल करो कि वो किस बच्चे को मिली पप्पी नहीं थी, बतरा की लिप्सा का एलान
था। और वो एलान तुम्हें कबूल था।"
उसका सिर झुक गया।
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