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गजलें और शायरी >> शेर-ओ-सुखन - भाग 2

शेर-ओ-सुखन - भाग 2

अयोध्याप्रसाद गोयलीय

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1295
आईएसबीएन :81-263-0103-1

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प्रस्तुत है शेर-ओ-सुखन भाग-2....

Sher-o-sukhan (2)

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


उस्ताद शायरों के मशहूर उत्तराधिकारी आधुनिक लखनवी शायरों का जीवन-परिचय, साहित्यिक विवेचन और उनकी बेहतरीन ग़ज़लों का संग्रह।

‘‘यह फ़क़त आपकी इनायत है।
वरना मैं क्या, मेरी हक़ीक़त क्या ?’’

(प्रारम्भ से सन् 1953 तक की इश्क़िया शायरी।)


उर्दू-शायरीके आदि कवि ‘वली’ दक्खनी (1668-1744 ई.) से लेकर वर्त्तमानकालीन ‘मज़ाज’ लखनवी तक केवल इश्क़ ही ग़ज़लका प्रधान और मुख्य विषय रहा है। मानवमें से आत्मा निकालने पर पुद्गल तो शेष बचता है, परन्तु ग़ज़लमेंसे इश्क़ निकाल दिया जाय तो कुछ भी बाकी़ नहीं रहता। इश्क़ ही ग़ज़ल की आत्मा एवं जिस्म है। ग़ज़ल-गो-शायरोंके अतिरिक्त नज़्न-गीत-ग़ो-शायरों, यहाँ तक कि प्रगतिशील नवयुवक शायरोंका भी इश्क़ एक दिलचस्प और खास मौजूँ रहा है।


ऐ ‘वली’ ! रहनेको दुनियामें मक़ामे-आशिक़1।
कूचये-जुल्फ़2 है या गोशये-तनहाई3 है।।


वली


वोह अजब घड़ी थी कि जिस घड़ी लिया दर्स नुस्ख़ये-इश्क़का4।
कि किताब अक़्लकी ताक़पर5 ज्युँ धरी थी त्यूँ ही धरी रही।।


सिराज


इश्क़-ही-इश्क़ है जहाँ देखो।
सारे आलममें फिर रहा है इश्क़।।
इश्क़ माशूक़, इश्क़ आशिक़ है।
यानी अपना ही मुब्तला6 है इश्क़।।
कौन मक़सदको7 इश्क़ बिन पहुँचा ?
आरजू इश्क़, मुद्दमा8 है इश्क़।।

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1. प्रेमियों के रहने योग्य स्थान; 2. प्रेयसीकी लटें अर्थात् प्रेयसीका कूचा; 3. एकान्त स्थान; 4. प्रेमपाठ; 5. आलेपर; 6. आशिक; 7. लक्षको; 8. अभिप्राय।


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