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धर्म एवं दर्शन >> अद्वैत वेदांत संप्रदाय में ईश्वर

अद्वैत वेदांत संप्रदाय में ईश्वर

प्रतिभा अग्रवाल

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :197
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13032
आईएसबीएन :0

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इस ग्रन्थ की सरल, बोधगम्य एवं मूलङ्‌कष विवेचना- पद्धति ने, कथ्य-तथ्य की सार्वजनीनता, भाषा को सरलता, विवेचन की सुरुचिपूर्णता, प्रतिपादन की स्पष्टता और शैली की भ्रमनिवारण परायणता ने प्रस्तुत ग्रन्थ के लिये निश्चय ही अप्रतिम लोकप्रियता का द्वार खोल दिया है

अद्वैत वेदान्त की युक्तिसंगत, तर्कप्रवण एवं आश्‍वस्तिदायिनी व्याख्याओं से दार्शनिक जगत् भली- भाँति परिचित है। चिन्तन प्रक्रिया की पराकाष्ठा तथा तत्वानुसंधान की निर्भ्रान्तता में तो अद्वैत-वेदान्त का अद्वितीयत्व प्रतिष्ठित ही है। धार्मिक मनोवृतियों एवं वैयक्तिक साधनाओं की पर्यवसानभूमि में प्रतिष्ठित ईश्वरतत्व की अतंत-परम्परा मै क्या संगति है? ईश्वर की सर्वगुण-सम्पन्नता एवं विराट् जगत् के सन्दर्भ में उसकी अखण्ड प्रभुता का निर्गुण ब्रह्म के अद्वय अस्तित्व से क्या सामन्जस्य हे? दोनों एक ही तत्व हैं, केवल दृष्टि भेद से दो रूपों में निरूपित हुए हैं अथवा यह प्रसन्न किसी अन्य सशक्त समीक्षा का मुखापेक्षी है? इन सारे प्रश्नों की प्रामाणिक, तार्किक एवं विश्वसनीय व्याख्या का विशद प्रयास डॉ० प्रमिता अग्रवाल ने प्रस्तुत ग्रन्थ में सफलता से किया है। इस ग्रन्थ की सरल, बोधगम्य एवं मूलङ्‌कष विवेचना- पद्धति ने, कथ्य-तथ्य की सार्वजनीनता, भाषा को सरलता, विवेचन की सुरुचिपूर्णता, प्रतिपादन की स्पष्टता और शैली की भ्रमनिवारण परायणता ने प्रस्तुत ग्रन्थ के लिये निश्चय ही अप्रतिम लोकप्रियता का द्वार खोल दिया है। डॉ० सुरेशचन्द्र श्रीवास्तव 'शुभाशंसा' से

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