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अग्निबीज
अग्निबीज
प्रकाशक :
लोकभारती प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2015 |
पृष्ठ :187
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 13035
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आईएसबीएन :9788180319853 |
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अग्निबीज, की मुख्य उपलब्धि उसमें वर्णित उत्तर भारत के गाँवों का सामाजिक जीवन है
'अग्निबीज' में प्रस्तुत कथा-योजना का समय स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद का है। उत्तर भारत के सामाजिक राजनैतिक जीवन और यहाँ की असह्य वर्ण व्यवस्था का उसपर प्रभाव इस उपन्यास का मुख्य विचार तत्व है। इसी कारण इसके नायक तीन ऐसे पात्र बनाये गये हैं जो अल्पवय हैं और पिछड़ी तथा निचली जातियों से आते हैं। श्यामा, जो एक विक्षिप्त स्वतंत्रता सेनानी की कन्या है, इन बाल पात्रों में सर्वाधिक जागृत है। श्यामा के पिता को, स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान पुलिस की लाठियों और यातनाओं ने -दूंगा बना दिया है। उनका भाई उनकी कृति और त्याग का पूरा फायदा उठाता है और राजनीति तथा सामाजिक जीवन में निरन्तर दन्द-फन्द करके एक महत्वपूर्ण कांग्रेस नेता बन जाता है।
'अग्निबीज' का सत्य उत्तर भारत के ग्रामीण जीवन का ऐसा मुखर सत्य है जिसके कारण उच्च जातियों के बुद्धजीवियों और आलोचकों ने इस उपन्यास के विचार तक को एक रूप तत्व दबाने का प्रयत्न किया लेकिन इसके व्यापक प्रभाव को रोक पाना उनके लिए सम्भव नहीं हो पाया। उपन्यास सारे देश में पढ़ा एवं सराहा गया और उसे अनेक विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे हैं।
'अग्निबीज, की मुख्य उपलब्धि उसमें वर्णित उत्तर भारत के गाँवों का सामाजिक जीवन है। पिछड़ी जातियों और हरिजनों के दुःखद और यातनामय जीवन की जैसी झाँकी 'अग्निबीज' में चित्रित है, उसका दर्शन प्रेमचन्द को छोड्कर किसी अन्य कथाकार के यहाँ उपलब्ध नहीं है। खुशी की बात तो यह है कि अग्निबीज का सत्य स्वतंत्रता प्राप्ति के 5० वर्ष बाद पुन : उजागर हो रहा है। समाज के उपेक्षित वर्ण जागृत होकर देश की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। उन्होंने सामाजिक राजनीतिक जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है।
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