आलोचना >> भक्ति आन्दोलन और भक्ति काव्य भक्ति आन्दोलन और भक्ति काव्यशिवकुमार मिश्रा
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प्रस्तुत पुस्तक का सम्बन्ध भक्ति-आन्दोलन और भक्ति-काव्य से है, भक्ति-आन्दोलन के मूल में जनता के दुःख-दर्द ही हैं और उन दुःख-दर्दों को बड़ी जिवंत मानवीयता के साथ उभरने, उनसे एकमेक होकर सामने आने में ही भक्ति-आन्दोलन की शक्ति को देखा जा सकता है
प्रस्तुत पुस्तक का सम्बन्ध भक्ति-आन्दोलन और भक्ति-काव्य से है, भक्ति-आन्दोलन के मूल में जनता के दुःख-दर्द ही हैं और उन दुःख-दर्दों को बड़ी जिवंत मानवीयता के साथ उभरने, उनसे एकमेक होकर सामने आने में ही भक्ति-आन्दोलन की शक्ति को देखा जा सकता है। अनुमान कर सकते है कि तीन शताब्दियों से भी अधिक समय तक अपने पूरे वेग के साथ गतिशील होने वाले इस भक्ति-आन्दोलन में जनता के ये दुःख-दर्द कितनी गहरी संवेदनशीलता के सानिध्य में उभरे होगें। भक्तिकाव्य में, उसके रचनाकारों में, अंतर्विरोध भी हैं, उनकी सीमाएँ भी हैं। पुस्तक में उनकी चर्चा भी की गई है। हम भक्तिकाव्य जैसा काव्य आज नहीं चाहते, पर जिन मूलवर्ती गुणों के कारण भक्तिकविता कालजयी हुई, वे गुण जरूर उससे लेना चहेते हैं, और इन गुणों के नाते ही हम उसे साथ लेकर चलना भी चाहते है।
पुस्तक में निबंधों में पुनरुक्ति भी मिल सकती है। अलग-अलग समय में लिखे गए निबंध ही मिलजुल कर यह किताब बना रहे हैं। इनमे से कबीर, सूर तथा भक्ति-आन्दोलन के सुसरे निबंध प्रकाशित भी हो चुके हैं। यहाँ वे कुछ संशोधित परिवर्धित रूप में फिर से प्रकाशित हो रहे हैं। मलिक मुहम्मद जायसी, तुलसी, भक्ति-आन्दोलन का पहला निबंध अप्रकाशित है। वे यहाँ पहली बार ही प्रकाशित हो रहे हैं। नानकदेव तथा गुरु गोविन्दसिंह पर लिखे निबंध भी अप्रकाशित हैं। ये विशेष अवसर के लिए लिखे गए निबंध थे, किन्तु किताब के विषय की सीमा में आ सकने के नाते उन्हें भी समेट लिया गया है।
भक्ति-आन्दोलन सम्बन्धी निबंधो में प्रमुखतः के दामोदरन, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारों को ही रेखांकित किया गया है।
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