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बिहारी का नया मूल्यांकन

बच्चन सिंह

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13078
आईएसबीएन :9788180318351

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प्रस्तुत पुस्तक में बिहारी सतसई का मूल्यांकन करते समय तत्कालीन सामंतीय परिवेश को बराबर दृष्टि में रखा गया है

प्रस्तुत पुस्तक में बिहारी सतसई का मूल्यांकन करते समय तत्कालीन सामंतीय परिवेश को बराबर दृष्टि में रखा गया है। 'बिहारी' दरबार में रहते थे, पर उनको दरबारी नहीं कहा जा सकता। उनमें चाटु की प्रवृत्ति नहीं थी, वे वेश-भूषा, रहन-सहन, आन-बाण आदि में किसी सामंत-सरदार से कम न थे, उनका दृष्टिकोण पूर्णतः सामंतीय था, जो सतसई के काव्य तथा शैलीगत सतर्कता और सज्जा में अभिव्यक्त हो उठा है। उनके प्रेम, नारी-सम्बन्धी भाव, गाँव-सम्बन्धी विहार सभी पर सामंत-कवि की छाप है, दरबारी कवि की नहीं। इस दृष्टिकोण को स्पष्ट करने पर ही सतसई का सम्यक आकलन किया जा सकता था। इसके लिए भी सतसई को ही साक्ष्य माना गया है। इससे सुविधा भी हुई। तत्कालीन परिस्थिति और राजनितिक स्तिथि के नाम पर कहीं से इतिहास के दस-बीस पृष्ठ फाड़कर चिपकाने नहीं पड़े। 'नयी-समीक्षा' का आग्रह भी कुछ ऐसा ही है।

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