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हिन्दी आलोचना : शिखरों का साक्षात्कार

रामचन्द्र तिवारी

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13122
आईएसबीएन :9788180313608

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प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य नन्द दुलारे बाजपेयी, आचार्य हजारीप्रसाद दिवेदी, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. राम विलास शर्मा, मुक्तिबोध, डॉ. नामवर सिंह, डॉ. बच्चन सिंह तथा डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी जैसे महँ समीक्षकों पर एक गवेषणात्मक दृष्टि डाली गयी है

दिवेदी-युग के उत्तरार्ध में आचार्य शुक्ल के रूप मेंपहली बार हिंदी-आलोचना ने पारंपरिक भारतीय काव्य-चिंतन की अंतरवर्ती प्राणधारा और आधुनिक यूरोप के विज्ञानालोकित कला-चिन्तन के उल्लसित प्रवाह की संश्लिस्ट शक्ति का आधार लेकर अपने मोलिक व्यक्तिव का निर्माण किया, उनका मूल स्वर रीती-विरोधी और लोक-मंगल की साधना के गत्यात्मक सौंदर्य का पोषक है। छायावाद-कालीन सौंदर्य-बोध का प्रेरक तत्व स्वन्त्रय चेतना है जो देश की अभिनव आकांक्षा और नवीन सांस्कृतिक मूल्यों के स्वीकार का धयोतक है रचना के कलावादी रूझान का नहीं। छायावादोत्तर प्रगतिशील आलोचन का प्रेरक-तत्व सामाजिक न्याय की प्रतिष्ठा की सात्विक आकांक्षा है। वैचारिक ग्रहजन्य सीमाओं के बावजूद हिंदी-साहित्यं में उसकी एतिहासिक भूमिका का महत्त सर्वमान्य है। प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य नन्द दुलारे बाजपेयी, आचार्य हजारीप्रसाद दिवेदी, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. राम विलास शर्मा, मुक्तिबोध, डॉ. नामवर सिंह, डॉ. बच्चन सिंह तथा डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी जैसे महँ समीक्षकों पर एक गवेषणात्मक दृष्टि डाली गयी है।

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