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आलोचना >> कथाकार प्रेमचंद

कथाकार प्रेमचंद

जफर रजा

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :324
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13169
आईएसबीएन :9788180313936

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इस पुस्तक में प्रेमचन्द साहित्य के कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिनसे हिन्दी संसार भी अभी यथेष्ट परिचित न था

भाई जाफर रजा प्रेमचन्द साहित्य के एक जाने- माने विद्वान् हैं। हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं पर अपने समान अधिकार, शोध और गवेषणा में अपनी गहरी रुचि, और अपनी स्वच्छ समीक्षादृष्टि के आधार पर उन्होंने अपनी इस पुस्तक में प्रेमचन्द साहित्य के कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिनसे हिन्दी संसार भी अभी यथेष्ट परिचित न था। उसी तरह उर्दू में प्रेमचन्द को हिंदी से अपरिचित रहकर देखने वालों ने बड़ी गुमराही पैदा की है और ऐसे अनेक पहलू आँख से ओझल हो गये हैं, जिनके बिना प्रेमचन्द साहित्य का ठीक-ठीक अध्ययन असंभव हो जाता है। डॉक्टर जाफर रजा ने अपनी इस पुस्तक में बहुत-सी एतद्विषयक सूचनाएँ और आवश्यक तथ्य प्रस्तुत किये हैं, जो प्रेमचन्द-साहित्य के गंभीर अध्ययन के लिए अपरिहार्य हैं।
भाई जाफर रजा ने प्रेमचन्द के उर्दू-हिन्दी उपन्यासों और कहानियों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करके प्रेमचन्द को ठीक से समझने के लिए नये रास्ते खोले हैं। उदाहरण के लिए प्रेमचन्द की रचना-प्रक्रिया को समझने के लिए उनकी रचनाओं के उर्दू और हिन्दी दोनों ही पाठों को देखना जरूरी है, क्योंकि उसके बिना लेखक के साथ न्याय नहीं किया जा सकता। भाई जाफर रजा ने शुद्ध पाठों को अपनी खोज, विभिन्न पाठों की समस्याओं और नयी रचनाओं की अपनी खोज के आधार पर प्रेमचन्द के साहित्य और उसकी रचना प्रक्रिया को समझने की दिशा में बड़ा सुंदर कार्य किया है। इतना निर्विवाद है कि उनकी यह पुस्तक प्रेमचन्द-संबंधी आलोचना-साहित्य को उनकी एक विशिष्ट देन है।

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