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संस्मरण >> खालिस मौज़ में

खालिस मौज़ में

शिवप्रसाद सिंह

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13178
आईएसबीएन :0

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खालिस मौज में' पढने के पहले एक अनुरोध सुन लें। शीर्षक से ध्वनित है कि रचनाओं में व्यंग्य-विनोद की अधिकता होगी

खालिस मौज में' पढने के पहले एक अनुरोध सुन लें। शीर्षक से ध्वनित है कि रचनाओं में व्यंग्य-विनोद की अधिकता होगी। व्यंग्य-विनोद का साहित्य में महत्त्व है, बहुत बड़ा महत्त्व। मैं व्यग्यकार नहीं हूँ। यह भी सतत याद रखने की चीज है। मैंने ये रचनाएँ समय-समय पर लिखीं। अधिकांश में भारत पर मंडराते संकट और उनमें छिपी साजिश का पर्दाफाश किया गया है। यह एक लेखक का हस्तक्षेप है जो तलवारों से हजार गुना अधिक कलम की ताकत से लैस है। अपने ही नेताओं की मुर्खता, समय पर मौन किन्तु उनकी असमय वाचालता का सोदाहरण विवरण है।

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