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पंचदेव की मिश्रित मूर्तियां

भारती कुमारी राय

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13232
आईएसबीएन :0

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प्रस्तुत ग्रन्थ में विषय-वस्तुओं के चयन एवं उनके ' अध्यायागत विवेचन में नवीन सूझ-बूझ का परिचय दिया गया है

'पंचदेवों की मिश्रित मूर्तियां' शीर्षक प्रस्तुत ग्रन्थ में विषय-वस्तुओं के चयन एवं उनके ' अध्यायागत विवेचन में नवीन सूझ-बूझ का परिचय दिया गया है। युग्म एवं संघाट मूर्तियों के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विवेचन में उनके नाना प्रकारों, यथा हरिहरि, हरि-ब्रह्मा सूर्य-ब्रह्मा, मार्तण्ड- भैरव की प्रक्रियाओं पर यथाशक्ति नवीन प्रकाश डालने का भरपूर प्रयास किया गया है 1 युग्म मूर्तियों की व्याख्या में सबसे प्रधान हरिहर की चर्चा भारत में ही नहीं, अपितु विदेशों में भी, उदाहरणार्थ मध्य- एशिया तथा दक्षिणपूर्व एशिया में इनकी लोकप्रियता का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। हिन्दू तथा बौद्ध धर्म की मिश्रित प्रतिमाओं, यथा शिव-लोकितेश्वर, विष्णु- अवलोकितेश्वर, सूर्य-अवलोकितेश्वर आदि की व्याख्या की गई है। युग्म-मूर्तियों की द्वितीय कोटि के निरूपण के प्रयास में देव अपनी शक्ति के साथ संयुक्त अंकित हैं; यथा शैव अर्द्धनारीश्वर, वैष्णव अर्द्धनारीश्वर तथा शाक्त अर्द्धनारीश्वर का विस्तृत विवरण इस ग्रन्थ में प्राप्य हैं। तृतीय कोटि में वैष्णव एवं शैव मतों की देवियों के संयुक्त मूर्तन; यथा लक्ष्मी-राधिका, गौरी-लक्ष्मी, लक्ष्मी-सरस्वती पर प्रकाश डाला गया है। संघाट मूर्तन में देव एवं देवियों का अंकन; उदाहरणार्थ हरिहर-पितामह, हरिहर पितामहहिरण्यगर्भ, पंचायतन-लिंग, विष्णु का विश्वरूप, शिव का विराटरूप, हरिहराभेद पर प्रकाश डाला गया है। शिल्पशास्त्र, प्रतिमाशास्त्र एवं संस्कृत, पाली, प्राकृत ग्रन्थों का भरपूर अवगाहन इस ग्रन्थ की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता है।
आशा है कि यह ग्रन्थ अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल सिद्ध होगा।
- सर्वभूत-हित-सुखायास्तु -
-भारती कुमारी

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