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प्रगतिशील साहित्य की जिम्मेदारी

दुर्गा प्रसाद सिंह

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13244
आईएसबीएन :9788180319976

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इस पुस्तक में मार्कंडेय सर्वथा भिन्न रूप में पाठकों से रू-ब-रू होंगे। मार्कंडेय के साहित्य-संवाद का यह संस्करण 'प्रगतिशील साहित्य की जिम्मेदारी' पर खरा उतरता है

हिंदी साहित्य में मार्कंडेय की पहचान मुख्यतः कहानीकार के रूप में हैं। २-डी, मिन्टोरोड़ से सीधे जुड़े रहे लोग भी उन्हें एक बेहतरीन किस्सागो के रूप में ही याद करते हैं। लेकिन, देश और समाज-संस्कृति की लेकर उनकी चिंताएं व् जिम्मेदारी का भाव उन्हें कहानी से नित्बंध भी करता रहता और विचार-रूप में सीधे व्यक्त हो उठता। यह पुस्तक मार्कंडेय की इस पहचान को सामने लाती है। इस पुस्तक की अंतर्वस्तु का फैलाव साहित्य से लेकर राजनिति की हद तक है। मार्कंडेय यहाँ जिस चिंतनधारा व् इतिहासबोध को अपनाते हैं वह आधुनिक समाज-विज्ञानों से आता तो है लेकिन अपने समाज की आंतरिक स्थिति, 'जन' तथा 'लोक' से अंतःक्रिया के साथ। इस पुस्तक में वैचारिक लेखों के आलावा 'गोदान' तथा अन्य ग्राम-उपन्यासों पर लिखे लेख तथा पुस्तक समीक्षाएं भी शामिल हैं। लोक-साहित्य पर डॉ लेख और डॉ भाव-चित्र हैं जो आधुमिक और प्रगतिशील दृष्टि को ही अपना प्रस्थान-बिंदु बनाते हैं। इस पुस्तक में मार्कंडेय सर्वथा भिन्न रूप में पाठकों से रू-ब-रू होंगे। मार्कंडेय के साहित्य-संवाद का यह संस्करण 'प्रगतिशील साहित्य की जिम्मेदारी' पर खरा उतरता है।

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