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संचार भाषा हिन्दी

सूर्यप्रसाद दीक्षित

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :264
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13295
आईएसबीएन :9788180317088

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इस कृति में प्रथम बार संचार भाषा रूप में हिन्दी का अनुप्रयोग स्पष्ट किया गया है

जनसंचार माध्यमों की सबसे बड़ी शक्ति है, संचार भाषा। मीडिया द्वारा प्रसारित भाषा में लक्ष्यीभूत श्रोता, दर्शक, पाठक विभिन्न बौद्धिक स्तरों के होते हैं। जन-माध्यमों का यह प्रयास होता है कि वे भाषिक सम्प्रेषण को सर्व सुलभ बनायें। इसके लिए एक-एक शब्द को बड़ी सावधानी के साथ प्रयुक्त करना होता है। यह ध्यान रखना होता है कि उच्चरित भाषा में कितना अन्तराल, कितना आयतन, कितना आरोहावरोह और कितना यति-गति-विधान रखा जाय। इन जन-माध्यमों की अपनी अलग-अलग भाषिक प्रोक्तियाँ होती हैं। अखबार भरसक जन-भाषा का प्रयोग करता है, रेडियो उसे ‘विजुअल’ बनाने का प्रयास करता है और टेलीविजन दृश्य भाषा का पूरी क्षमता के साथ निर्वाह करता है। इधर कम्प्यूटर, इण्टरनेट, मोबाइल आदि ने भाषा के नये-नये रूप निकाले हैं। इन्हें समझने के लिए भाषा प्रौद्योगिकी का संज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। इसके लिए अपेक्षित है—अनुवाद कला का अभ्यास, डबिंग, दुभाषिया प्रविधि और वाचिक कलाओं की जानकारी, कमेण्ट्री, उद्घोषणा तथा संचालन की सफलता पूर्णत: भाषिक उच्चारण और लहजे पर निर्भर होती है। समाचार, फीचर, ध्वनि नाटक, संवाद, वार्त्ता, वृत्तचित्र, रिपोर्ताज आदि विधाएँ मूलत: भाषिक प्रयोगों पर निर्भर होती हैं। संचार भाषा में सर्वाधिक ध्यान दिया जाता है शब्द संवेदना पर। उसी के सहारे विज्ञापन के नारे इतने हृदयस्पर्शी सिद्ध होते हैं। इस कृति में प्रथम बार संचार भाषा रूप में हिन्दी का अनुप्रयोग स्पष्ट किया गया है। कहना न होगा कि यह कृति प्रत्येक संचार कर्मी के लिए मात्र उपादेय ही नहीं बल्कि अपरिहार्य है।

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