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हास्य-व्यंग्य >> सर्वर डाउन है

सर्वर डाउन है

यश मालवीय

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :288
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13301
आईएसबीएन :9788180316494

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यह संकलन व्यंग्य लेखन की समृद्ध परंपरा में एक मील का पत्थर साबित होगा

सृजन ह्रदय की अकुलाहट व्यक्त करने का माध्यम है। जब कोई संवेदनशील रचनाकार किसी विधा की अभिव्यक्ति के लिए अपर्याप्त पाता है तो वह विधाओं के दर-दर पर भटकता है। जीवन इतना जटिल है कि उसे विश्लेषित करना, समझना और अभिव्यक्त करना किसी भी संवेदनशील रचनाकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण रचनाकर्म बना रहता है। शायद यही कारण है कि यश मालवीय भी विधा-दर-विधा भटकते रहते हैं। किसी भी बेचैन रूह के परिंदे की यही परिणति है। किसी भी पाठक के लिए यह एक चौकानेवाला अनुभव होता है जब वह यश का अत्यन्त भावप्रवण गीत पढने के बाद अचानक उसके किसी तीखे व्यंग्य लेख से साक्षात्कार करता है। कई बार तो यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि यश मूल रूप से संवेदनशील कवि हैं अथवा व्यग्यकार। यश के पिता स्वर्गीय उमाकांत मालवीय इस बेचैनी के शिकार थे मगर वह स्थितियों को उजागर करने के लिए अतीतोंमुख हो जाते थे। यह बेचैनी एक तरह से यह को विरासत में मिली है। उनका दृष्टिकोण इस दृष्टि से नितांत भिन्न है, वह वर्तमान से उचककर भविष्य की और झाँकने की कोशिश करते हैं। ऐसे रचनाकारों को एक समय में बहुमुखी प्रतिभा के धनि कहा जाता था। समसामयिक ज्वलंत प्रश्नों पर शरद जोशी बहुत निर्ममता से प्रहार करते थे, उनके बाद यश प्रवृति यश में देखी जा सकती है। वह विडम्ब्नापूर्ण परिस्थितियों का अन्तःपरीक्षण करके यथार्थ से मुठभेड़ करते हैं।
शरद जोशी की ही तरह यश के व्यग्य लेख भी पत्र-पत्रिकाओं के अलावा दैनिक पत्रों के पृष्ठों पर बिखरे पड़े हैं। शरद जोशी के व्यग्य लेखों के संकलन का कार्य आज तक जारी है। यह एक सुखद आश्चर्य है कि यश यह काम स्वयं कर रहे हैं, और इसी क्रम में उनका यह संकलन व्यंग्य लेखन की समृद्ध परंपरा में एक मील का पत्थर साबित होगा।

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