उपन्यास >> सेमल का फूल सेमल का फूलमार्कण्डेय
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रस तो बरसे लेकिन कोई चैन न पाये, वैसी ही यह मर्म-व्यथा से भरी कथा है
केदारनाथ अग्रवाल के एक पत्र से : ...गद्य की भाषा में केवल यह कहूँगा कि ऐसी मार्मिक पुस्तक के लेखक—तुमको मेरी हजार हार्दिक बधाइयाँ। अब लो कविता भी पढ़ो— काँटों में खिलते गुलाब की पँखुड़ियों पर, चातक अपना दिल निकाल कर रख दे जैसे और वही दिल फिर सुगंध वन-वन के महके और वही दिल फिर बुलबुल-सा वन में गाये, रस तो बरसे लेकिन कोई चैन न पाये, वैसी ही यह मर्म-व्यथा से भरी कथा है, इसको पढ़कर याद मुझे भवभूति आ गए और नयन में करुणा के घन सघन छा गए। 'सेमल के फूल' को पढ़कर 18-2-57 : 9 बजे रात्रि
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