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शबरी
शबरी
प्रकाशक :
लोकभारती प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2012 |
पृष्ठ :61
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 13309
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आईएसबीएन :9788180316760 |
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शबरी काव्य विचारों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है
'शबरी' में कवि आधुनिकता के अधिक पास होते हैं। उन्होंने लिखा है--'वाल्मीकि ने सामाजिक वर्ण-व्यवस्था से ऊपर व्यक्ति के आध्यात्मिक स्वत्व एवं असंग कर्म को प्रतिष्ठापित किया और शबरी वही बीज चरित्र है। चरित्र की दृष्टि से शबरी मन्त्र चरित्र लगती है'--अपनी छोटी-सी उपस्थिति में सार-भूत। शबरी काव्य विचारों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। एक दलित स्त्री को अपने कर्म-श्रम के जरिये ऊपर उठाकर ऋषि मतंग जिस भूमि पर प्रतिष्ठित करते हैं, उससे पौराणिकता की रक्षा भी होती है और वर्ण-व्यवस्था के विरुद्ध उठती आज की आवाज को भी बल मिलता है।
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