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सुरलोक
सुरलोक
प्रकाशक :
लोकभारती प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 1997 |
पृष्ठ :114
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 13331
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आईएसबीएन :0 |
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सुरलोक पुस्तक संगीत की दुनिया की ऐसी झलक देती है जो संगीत कला के अध्ययन करने वाले को आज जानना अनिवार्य है
सुरलोक पिछले आधी सदी के उस संगीतमय जगत के दृश्य को रेखांकित करता है जिससे केशवचन्द्र वर्मा स्वयं गुजरे हैं। यह पुस्तक उस जगत का एक ऐसा साक्ष्य बन गयी है जो अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने जिस तरह उस रहस्यमय लोक में घुसकर उसकी एक झलक हिन्दी के उन पाठकों को 'सुरलोक' में दिखा देने की सार्थक कोशिश की है उसमें उनके भावुक और जीवन्त अनुभवों को जाना जा सकता है। जैसा कि संगीत मर्मज्ञ और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संगीत विभागाध्यक्ष पंडित रामाश्रय झा ने कहा है कि यह पुस्तक ''उस समय की संगीत की दुनिया की ऐसी झलक देती है जो संगीत कला के अध्ययन करने वाले को आज जानना अनिवार्य है... संगीत से इतना गहरा लगाव रखने के बावजूद वर्मा जी संगीत कला पर लिखते समय जिस तरह तटस्थ रह सके हैं वह भी पुस्तक का एक आकर्षण है।'
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