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लेख-निबंध >> सूर्य प्रणाम

सूर्य प्रणाम

विमल डे

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 13333
आईएसबीएन :9788180317378

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मैं पर्यटक हूँ वास्तविक घटनाओं का उल्लेख करना ही मेरा धर्म है

सूर्य प्रणाम, का स्थान-काल, पात्र तथा घटनाएं सभी वास्तविक हैं। मैं पर्यटक हूँ वास्तविक घटनाओं का उल्लेख करना ही मेरा धर्म है। यथार्थ के वर्णन में एकरसता आ जाती है। मैं एक पथिक हूँ अपनी यात्राओं के दौरान जो भी मैं देखता हूँ मुझे जो अनुभव होता है, उसी को मैं अपने पाठकों तक पहुँचाने का प्रयत्न करता हूँ।
मैंने अपनी यात्राओं के दौरान बहुत से मंदिर, मठ और पूजास्थल देखे हैं, बहुत से तीर्थों में जाकर शीश नवाया है। हिमालय के बहुतेरे तीर्थस्थलों में मैंने देव-स्पर्श पाया, हिमालय की पुण्यभूमि में ही पुण्यात्माओं का आविर्भाव संभव है।
एंडीज की यात्रा ने मुझे तपस्या की अंतिम सोपान पर पहुँच दिया था।
एंडीज तथा मध्य व दक्षिणी अमरीका की प्राचीन सभ्यता में ज्यों सूर्य को मूल देवता का स्थान प्राप्त था त्यों ही जापान का मूल देवता भी सूर्य है। जापान के सम्राट को सूर्य का प्रतिनिधि मानते हैं, जापानी पताका का प्रतीक चिह्न भी सूर्य है। सूर्य का प्रभाव जापानियों के चरित्र में भी दिखायी देता है। सूर्य शक्ति और ओज का प्रतीक है।
सूर्य प्रणाम ग्रंथ सूर्य-देवता के प्रति मेरा अर्घ है। सूर्य को देवता मानने वाले जापान और एंडीज में मैंने जो कुछ देखा, सुना और जाना, उसी अनुभव को मैं इस लेखन के जरिये अपने पाठकों तक पहुँचा रहा हूँ।

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