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थोड़ा सा प्रगतिशील

ममता कालिया

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :119
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 13338
आईएसबीएन :9788180318504

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इन कहानियों में स्त्री विमर्श समानता का स्वप्न लेकर उपस्थित है

ममता कालिया की नवीन कहानियों का संग्रह 'थोड़ा सा प्रगतिशील' उनके रचनात्मक विकास का महत्त्वपूर्ण बिन्दु है। इन कहानियों में एक ओर प्रेम तो दूसरी ओर बदलते हुए समाज की जीवन्त तस्वीर है। इन कहानियों को महज स्त्री लेखन के कोष्ठक में सीमित नहीं किया जा सकता क्योंकि इनमें समूचे समाज की संघर्षधर्मिता विभिन्न पात्रों और स्थितियों द्वारा व्यक्त हुई है। प्रमुख आलोचक मधुरेश के शब्दों में 'संरचना की दृष्टि से ममता कालिया की कहानियाँ इस औपन्यासिक विस्तार से मुक्त है जिसके कारण ही कृष्णा सोबती की अनेक कहानियों को आसानी से उपन्यास मान लिया जाता है। काव्योपकरणों के उपयोग में भी ये संयत कहानियाँ हैं। यह अकारण नहीं कि उनकी भाषा में एक खास तरह की तुर्शी है जिसकी मदद से वे सामाजिक विदूपताओं पर व्यंग्य का बहुत सीधा और सधा उपयोग करती हैं।'
प्रस्तुत कहानियों का शिल्प मौलिक और सहज है तथा भाषा शैली जानदार। वरिष्ठ कथाकार उपेन्द्रनाथ अश्क के शब्दों में, 'ममता कालिया की कहानियों में हमेशा अपूर्व पठनीयता रही है। पहले वाक्य से उनकी रचना मन को बाँध लेती है और अपने साथ अन्तिम पंक्ति तक बहाये लिये जाती है।''
इन कहानियों में स्त्री विमर्श समानता का स्वप्न लेकर उपस्थित है।

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