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अक्षत
अक्षत
प्रकाशक :
राधाकृष्ण प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2002 |
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 13389
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आईएसबीएन :8171197426 |
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ये कविताएँ हमें प्रेम की याद दिलाती हैं, उसकी उस ताकत की याद दिलाती हैं जो हमें देह में देह को और आत्मा में आत्मा को अनुभव करने की क्षमता देता है
तुम
मेरी एकमात्र पुस्तक हो
मेरे मन का धर्मग्रन्थ तुम
मेरी एकमात्र कविता हो
मेरे सृजन के सच्चे दस्तावेजश् तुम
मेरा एकमात्र विश्वास हो
मेरी आत्मा के वास्तविक सहचर
प्रेम का यही अकुंठ भाव इन कविताओं का मूल स्वर है। यह प्रेम-कविताओं का संग्रह है जिनकी कमी इधर आकर बहुत खलने लगी है। कविता के केन्द्र से प्रेम का हटना बेशक जीवन का अनुगमन ही है, क्योंकि जीवन का केन्द्र भी आज प्रेम नहीं है, लेकिन इसीलिए प्रेम अपनी तमाम पारदर्शिताओं, स्वच्छताओं और उदात्तताओं के साथ और भी जरूरी हो जाता है। वह एक अमूर्त भाव है लेकिन दुनिया में उसका अभाव हमें किसी चीज की तरह कचोटता है, जिसे इतनी तमाम चीजों की उपस्थिति भी पूर नहीं पाती।
ये कविताएँ हमें प्रेम की याद दिलाती हैं, उसकी उस ताकत की याद दिलाती हैं जो हमें देह में देह को और आत्मा में आत्मा को अनुभव करने की क्षमता देता है, हमें ज्यादा सहनशील, सहिष्णु और संसार को ज्यादा रहने लायक बनाता है।
तुम
मेरे पास
सुख की तरह हो
जैसे जड़ों के पास जमीन
तुम्हारा स्पर्श मुझे छूता है
जैसे सूरज छूता है पृथ्वी।
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