कविता संग्रह >> अतिक्रमण अतिक्रमणकुमार अंबुज
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अंबुज की संवेदना अपने कथ्य के अनुरूप शिल्प सहजता से उपलब्ध कर लेती है क्योंकि एक समृद्ध काव्य-भाषा उनका सबसे कारगर औजार है
हमारे दौर की कविता के बारे में कभी-कभी एक आलोचना यह भी सुन पड़ती है कि ज्यादातर कवियों के पहले कविता संग्रह ही उनके सबसे अच्छे संग्रह साबित होते हैं, दूसरे संग्रहों तक आते-आते उनका प्रकाश मंद हो जाता है, यथार्थ की काली गहराइयों में जाकर उनकी लालटेनें बुझने लगती हैं। इस बात में अगर कोई सचाई है तो कुमार अंबुज को उसके अपवाद की तरह देखा जा सकता है। अंबुज का पहला कविता संग्रह 1992 में प्रकाशित हुआ था और सिर्फ दस वर्ष के अंतराल में उनके चौथे संग्रह का छपना सबसे पहले यह बतलाता है कि इस कवि के पास कहने के लिए बहुत कुछ है : निरवधि काल और विपुल पृथ्वी है, बल्कि एक पूरा सौरमंडल है, निर्वात और सघन पदार्थों में से गुजरना उसका रोज का काम है। वायुमंडल की सैर करता-करता वह ग्रह-नक्षत्रों को खंगा लेता है, मंगल ग्रह के लोहे को अपने शरीर और रक्त में महसूस करता है और अंतत: अपनी पृथ्वी पर लौट आता है।
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