उपन्यास >> चतुरंग चतुरंगदिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
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चतुरंग संग्रह के चारों कथानक अपूर्व, आकर्षक और रहस्यमयी लगते हैं
चतुरंग को बीसवीं शताब्दी के सातवें-आठवें दशक का मुंबई कॉस्मोपॉलिटन परिवेश एक नया आयाम प्रदान करता है। इसके साथ है दिलीप चित्रे की बिम्बधर्मी अभिव्यक्ति की कई शैलियों को अपनाने वाली सर्जनशील भाषा। चतुरंग संग्रह के चारों कथानक अपूर्व, आकर्षक और रहस्यमयी लगते हैं। महानगर की भीड़ में लगातार अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद में भटकते पात्र कहानी में एक अदभुत नाटकीयता पैदा करते हैं जो लेखक के अपने अनुभवों से निकले हुए प्रतीत होते हैं।
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