नारी विमर्श >> नारी कामसूत्र नारी कामसूत्रविनोद वर्मा
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काम को आत्मज्ञान की चरम सीमा तक ले जाना ही इस पुस्तक का ध्येय है
पुरातन काल में नारी और काम, दोनों विषयों पर हमारे देश में बहुत कुछ लिखा
गया। वात्स्यायन द्वारा रचित कामसूत्र में तथा चरक और सुश्रुत के आयुर्वेद
ग्रंथों में नारी के काम से संबंधित कई पहलुओं पर ज्ञान प्राप्त हुआ।
आयुर्वेद के आचार्यों ने गर्भ, प्रसव आदि विषयों पर भी बहुत विस्तार से लिखा।
किंतु पुरुषों द्वारा रचित इन सभी ग्रंथों में नारी को पुरुष-दृष्टि से देखते
हुए उसमें सहचरी एवं जननी का रूप ही देखा गया है। नारी की इच्छाएँ,
अनिच्छाएँ, उसकी आर्तव संबंधी समस्याएँ तथा उनका उसके काम-जीवन से संबंध और
ऐसे अनेक विषय पुरुष-दृष्टि से छिपे ही रहे। नारी कामसूत्र की रचना में एक
भारतीय नारी ने न केवल इन सब विषयों का विस्तार से वर्णन किया है, बल्कि
आधुनिक नारियों की समस्याओं तथा हमारे युग के बदलते पहलुओं के संदर्भ में भी
नारी और नारीत्व को देखा है। इस पुस्तक में लेखिका ने त्रिगुण पर आधारित एक
नए सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए नारी तत्त्व और पुरुष तत्त्व के आधार पर
नर-नारी की मूल प्रकृति के अंतर को रेखांकित किया है और उनको एक-दूसरे का
पूरक सिद्ध किया है, न कि प्रतिस्पर्द्धी। यह पुस्तक लेखिका के दस वर्षों के
अनुसंधान और परिश्रम का परिणाम है। नर और नारी दोनों को नारी के भिन्न-भिन्न
रूप समझने की प्रेरणा देना तथा काम को आत्मज्ञान की चरम सीमा तक ले जाना ही
इस पुस्तक का ध्येय है। लेखिका की पश्चिमी देशों में आयुर्विज्ञान की शिक्षा
तथा आयुर्वेद और योग का लंबे समय तक अध्ययन, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान
और अनुभव इस ग्रंथ को एक संपूर्ण कृति बनाते हैं। यह पुस्तक इससे पहले जर्मन
(1994) में, फ्रैंच (1996) में, अंग्रेजी (1997) में तथा डच (1998) भाषाओं
में प्रकाशित हो चुकी है।
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