लोगों की राय

उपन्यास >> नरवानर

नरवानर

शरण कुमार लिंबाले

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 13568
आईएसबीएन :9788183612234

Like this Hindi book 0

शरणकुमार लिंबाले का यह उपन्यास समकालीन दलित विमर्श के सन्दर्भ में एक जरूरी पुस्तक है

नर वानर - 1956 से 1996 तक के समय पर आधारित यह उपन्यास दरअसल आत्मचिंतन है। दलित विमर्श के संवेदनशील विस्फोटक संदर्भ का एक साहित्यिक विश्लेषण। लेखक के अनुसार इस आत्मचिंतन या विश्लेषण के मूल में हैं कुछ स्मृतियाँ, कुछ बहसें, कुछ समाचार, कुछ साहित्य पाठ, समाज की गतिविधियाँ और उनसे उत्पन्न प्रतिक्रियाएँ, बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार और व्यभिचार की ओर उन्मुख दैनंदिन नैतिकता, दंगे और हिंसा, राजनीति का अपराधीकरण, अपराधियों को प्राप्त प्रतिष्ठा, राष्ट्रीय नेतृत्व का भ्रष्टाचार, बढ़ती हुई बेरोजगारी, महँगाई, गरीबी और आबादी। लेकिन मराठी में ‘उपल्या’ नाम से प्रकाशित और चर्चित इस उपन्यास की केन्द्रीय चिन्ता समकालीन दलित आन्दोलन है। पहले अध्याय में एक सनातनी ब्राह्मण परिवार के दलितीकरण का चित्रण है तो तीसरे अध्याय में एक ब्राह्मण परिवार की ही बेटी एक दलित से विवाह करके नया जीवन शुरू करती है। बाकी दो अध्यायों में दलित आंदोलन के उभार, संघर्ष और विखंडन पर दृष्टिपात किया गया है। कहना न होगा कि हिन्दी और मराठी में समान रूप से लोकप्रिय लेखक शरणकुमार लिंबाले का यह उपन्यास समकालीन दलित विमर्श के सन्दर्भ में एक जरूरी पुस्तक है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book