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उपन्यास >> टेरोडैक्टिल

टेरोडैक्टिल

महाश्वेता देवी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13647
आईएसबीएन :817119284X

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टेरोडैक्टिल एक अर्धमानव, अर्धपक्षी जीव है, जो नागेसिया आदिवासी जाति के पूर्वपुरुषों की आत्मा के रूप में अवतरित होता है

भारत की आदिवासी जनजाति की चेतना, संस्कृति, उत्पीड़न, संघर्ष और मानवीय गरिमा का एक और ज्वलंत प्रमाण प्रस्तुत करनेवाली अप्रतिम कथाकार महाश्वेता देवी की नवीनतम कथाकृति है- टेरोडैक्टिल। जिसमें यथार्थ और फैंटेसी के अद्‌भुत समन्वय से ऐसे वातावरण का सृजन किया गया है जो न केवल जनजातियों की भौतिक पीड़ाओं को स्वर देता है, अपितु उनकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को भी नये आयाम देता है और उनके प्रति मुख्य धारा के विकसित भारतीय जनमानस के दायित्वों के प्रति उसे सतर्क करता है। टेरोडैक्टिल एक अर्धमानव, अर्धपक्षी जीव है, जो नागेसिया आदिवासी जाति के पूर्वपुरुषों की आत्मा के रूप में अवतरित होता है और शोषण और उत्पीड़न के विरुद्ध उस पूरी जाति के संघर्ष को एक नए मिथ से जोड़ता है। मध्यप्रदेश के एक काल्पनिक पहाड़ी स्थल-पिरथा-की पृष्ठभूमि में रचित यह उपन्यास पाठक को सर्वग्रासी पूँजीवादी प्रगति और आदिम समाजवादी सांस्कृतिक, सामाजिक परम्परा के बीच दो जीवन-पद्धतियों और दो प्रकार के जीवन-मूल्यों के संघात को दर्शाता है। पूरे कथानक में अद्‌भुत और सामान्य, चिरंतन और आधुनिक का ऐसा संतुलन पैदा किया गया है कि पाठक साँस रोके आधिभौतिक से भौतिक जगत् तक की यात्रा करता हुआ उस मानवीय त्रासदी का साक्षात्कार करता है, जो उसके वर्तमान ही नहीं उसके भविष्य को भी उघाड़कर उसके सामने रख देता है।

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