लेख-निबंध >> भारतनामा भारतनामासुनील खिलनानी
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भारतीय विविधता और बहुलता का गुणगान करता हुआ यह भारतनामा अपने पाठकों को राष्ट्रीय जीवन के विविध आयामों का साक्षात्कार कराता है
भारतनामा
भारतनामा स्वतंत्रता की स्वर्ण जयंती के अवसर पर रची गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा बिकने वाली पुस्तकों में से एक है। अँगरेज़ी में द आइडिया ऑव इंडिया के नाम से 1997 में छपी इस पुस्तक ने प्रकाशित होते ही अपनी अनूठी शैली, प्रामाणिकता, समृद्ध विश्लेषण और दृष्टि संपन्नता के कारण सारी दुनिया में भारतविद्याविदों से लेकर सामान्य पाठकों तक सराहना प्राप्त की। अमर्त्य सेन, रजनी कोठारी, इयान जैक और माइकल फुट जैसे बुद्धिजीवियों ने इस पुस्तक को आज़ादी के बाद के भारत के क्रम-विकास का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ क़रार दिया। सामान्यतः आधुनिक भारत का इतिहास औपनिवेशिक युग तक ही लिखा जाता है। लेकिन, खिलनानी ने पहली बार आज़ादी के बाद से नब्बे के दशक तक भारतीय लोकतंत्र के विकास को इतिहास-दृष्टि का केंद्र बनाया। ललित निबंध की शैली का प्रयोग करते हुए उन्होंने भारत के अंतर्निहित विचार को उसके सभी रंगों में चित्रित किया। भारतनामा मूलतः राजनीति शास्त्र की कृति होने के बावजूद तथ्यों से भरपूर होते हुए भी इसकी वाक्य रचना समाज विज्ञान की अन्य रचनाओं की तरह एक क्षण भी सपाट बयानी से काम नहीं चलाती। इसमें उद्धरणों का इस्तेमाल भी इस तरह किया गया है कि वे एक सतत प्रवाहमान अनुभूति का अंग लगते हैं। नेहरू, गाँधी, आंबेडकर और सावरकर समेत भारतीय राजनीति के कई नायक शैलीगत विशिष्टता के योगदान से व्यक्ति नहीं रहते बल्कि एक विचार में तब्दील हो जाते हैं। भारत या इंडिया नाम का राष्ट्र अपने भौगोलिक और ऐतिहासिक अस्तित्व के साथ धीरे-धीरे एक समग्र विचार के रूप में उभरता है। खिलनानी का राजनीति शास्त्र ग़ालिब के पत्रों में दर्ज पुरानी दिल्ली के ध्वंस की त्रासदी से होता हुआ भारतीय उपमहाद्वीप के सीने पर विभाजन की अमिट लकीर खींचने वाले सिरिल रेडक्लिफ़ की एकांत हवेली का वर्णन डब्ल्यू.एच. ऑडेन की कविता के ज़रिये करता है। वह पंचवर्षीय योजनाएँ बनाने वाले महलनोबीस की सांख्यिकीय निपुणता और टैगोर के गद्य काव्य के संबंधों को स्पर्श करता है। यह समाज विज्ञान राजनेताओं के साथ-साथ नीरद सी. चौधरी, नैपॉल और मंटो के माध्यम से राष्ट्रवाद, औपनिवेशिकता व विभाजन की जाँच-पड़ताल करता है। भारतनामा एक ऐसी अंतर्यात्रा है जो ऋग्वेद के पुरुष सूक्त से शुरू होकर विभाजन की त्रासदी से गुज़रते हुए भविष्य के मंदिरों तक पहुँचती है। भारतीय विविधता और बहुलता का गुणगान करता हुआ यह भारतनामा अपने पाठकों को उस राष्ट्रीय जीवन के विविध आयामों का साक्षात्कार कराता है जिनके तहत नित्यप्रति हमारे लोकतंत्र का चेहरा अपना भारतीय रूप ग्रहण कर रहा है।
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