आलोचना >> भारतीय साहित्य स्थापनाएं और प्रस्तावनाएं भारतीय साहित्य स्थापनाएं और प्रस्तावनाएंके. सच्चिदानन्दन
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भारतीय साहित्य भारत के जनगण की ही तरह विविधता और एकता के परस्पर सूत्रों से बुनी हुई एक सघन इकाई है
भारतीय साहित्य भारत के जनगण की ही तरह विविधता और एकता के परस्पर सूत्रों से बुनी हुई एक सघन इकाई है। विभिन्न धाराओं, व्यक्तित्वों और विचार-सरणियों के लोकतांत्रिक अन्तर्गुफन से ही वह अस्तित्व में आती है। वरिष्ठ मलयाली कवि और चिन्तक के. सच्चिदानन्दन की यह पुस्तक एक तरफ जहाँ इस विविधता के सूत्रों को रेखांकित करती है, वहीं साहित्य और विशेषकर भारतीय साहित्य की वर्तमान स्थिति व उसके सामने उपस्थित चुनौतियों का भी अन्वेषण करती है। मूल रूप से अँगरेजी में 'इंडियन लिटरेचर : पोजीशंस एंड प्री पोजीशंस' नाम से प्रकाशित और बहुपठित इस पुस्तक में मिर्जा गालिब, महाश्वेता देवी, ए.के. रामानुजन, ५२- खांडेकर, कमलादास, चन्द्रशेखर कंबार, केदारनाथ सिंह, सई सीताकांत महापात्र, आक्टेवियो पाज और पाब्लो नेरुदा जैसे साहित्य-स्तम्भों के साथ-साथ साहित्य की मौजूदा चिन्ताओं और प्रवृत्तियों को चिन्तन का विषय बनाया गया है। पाठक इस निबन्ध संकलन में उत्तर-आधुनिकता, आधुनिकता दलित-लेखन, स्त्री-लेखन, भारतीय आख्यान परम्परा, पाठक की नई भूमिका, आधुनिक लेखक की दुविधाएं तथा कविता का कार्य आदि अनेक समकालीन तथा ज्वलंत मुद्दों पर भी विचारोत्तेजक सामग्री पाएँगे।
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